Tuesday, October 28, 2008

बाल-न्याय (संरक्षा एवं सुरक्षा) अधिनियम

बाल-न्याय (संरक्षा एवं सुरक्षा) अधिनियम 2000 तरुण या बालक (जो 18 वर्ष से कम आयु के हों) के निम्न जरूरतों से संबंधितहैः
• संरक्षा एवं सुरक्षा की जरूरत
• कानूनी कार्रवाई का सामना
इन बच्चों को संरक्षा एवं सुरक्षा की जरूरत
2 (डी) के अनुसार जिन बच्चों को संरक्षा एवं सुरक्षा की जरूरत है, उससे मतलब है -
• जो बिना घर के या जीविका के साधन के बिना पाया जाता है।
• जिसके माँ-बाप या संरक्षक देखभाल करने में सक्षम न हों।
• जो अनाथ या जिसके माँ-बाप ने परित्यक्त कर दिया हो या जो खो गया हो या घर से भागा हुआ बच्चा या फिर काफी जाँच पड़ताल के बाद भी जिसके माँ-बाप का पता नहीं लगाया जा सकता।
• जो संभोग या अनैतिक कार्य से शोषित, सताया हुआ या पीड़ित हो या जो इस तरह के शोषण के प्रति संवेदनशील हों।
• जो नशा या बाल-व्यापार से पीड़ित हों
• जो किसी सशस्त्र संघर्ष, नागरिक प्रतिरोध या प्राकृतिक आपदाओं के शिकार हों।
बाल-कल्याण समिति: इस कानून के अनुसार प्रत्येक राज्य सरकार को, राज्य के प्रत्येक जिले या जिला-समूह में बालकों की देखभाल, सुरक्षा, इलाज, विकास एवं पुनर्वास के लिए एक या एक से अधिक बाल-सरंक्षा एवं सुरक्षा समिति का गठन करना है। यह समिति जरूरतमंद बच्चों के मूलभूत जरूरत की व्यवस्था करेगी और उसके मौलिक अधिकारों की रक्षा करेगी।
समिति के समक्ष प्रस्तुत
कोई भी बालक जिसे संरक्षा एवं सुरक्षा की जरूरत है उसे समिति के समक्ष - विशेष बाल पुलिस ईकाई, निर्दिष्ट पुलिस अधिकारी, लोक सेवक, चाइल्ड लाइन, राज्य सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त एवं पंजीकृत स्वयं सेवी संस्था, सामाजिक कार्यकर्ता या राज्य सरकार द्वारा अधिकृत कोई अन्य व्यक्ति या संस्थाएँ या स्वयं बालक / बालिका उपस्थित होकर अपनी बात कह सकता है।
घटना का सुनने जानने के बाद बाल कल्याण समिति उस बच्चे को बाल सुधार गृह भेजने का निर्देश दे सकती है और उस मामले की त्वरित गति से जाँच के लिए किसी सामाजिक कार्यकर्ता या बाल कल्याण अधिकारी को अधिकृत कर सकती है।
जाँच के बाद यदि यह पाया जाता है कि संबंधित बालक का न तो परिवार और न ही कोई प्रत्यक्ष आधार है तो उसे बाल सुधार गृह या आश्रय गृह में तब तक रखने के लिए कहा जा सकता है जब तक कि या तो उसके पुनर्वास के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं हो जाती या फिर वह 18 वर्ष के अधिक का नहीं हो जाता।
कानूनी कार्रवाइयों का सामना कर रहे बच्चे
कानून से संघर्षरत बच्चे का मतलब है ऐसे बच्चे जिसपर किसी गैर कानूनी कार्य को करने का अपराध है।
बाल-न्याय बोर्ड
प्रत्येक राज्य सरकार राज्य के प्रत्येक जिले या जिला-समूह में बालकों की देखभाल, सुरक्षा, इलाज, विकास एवं पुनर्वास के लिए एक या एक से अधिक बाल सरंक्षा एवं सुरक्षा समिति का गठन करे ताकि कानून से संघर्षरत बच्चे को जमानत दी जा सके और उस बच्चे के हित में उस मामले का निपटारा किया जा सके।
मादक द्रव्य तथा पदार्थों का दुरुपयोग
मादक द्रव्य तथा विषैले पदार्थ अधिनियम 1985
यह कानून मादक द्रव्य तथा विषैले पदार्थों के उत्पादन, अपने पास रखने, उसे कहीं लाने-ले जाने, खरीद-बिक्री को अवैध घोषित करता है, तथा इस कार्य में संलग्न व्यक्ति आदि या इसके अवैध व्यापारी के लिए दंड का प्रावधान करता है।
अपराधी के द्वारा हथियार या हिंसा का उपयोग करना या उपयोग की धमकी देना, नाबालिगों का इस अपराध के लिए उपयोग करना, किसी शिक्षण संस्थान या समाज सेवा केन्द्र में अपराध करने वाले के लिए अधिक दंड का प्रावधान है।
मादक द्रव्य तथा नशीले पदार्थों के अवैध व्यापार निवारण अधिनियम 1988
इस कानून के अनुसार वैसे व्यक्ति जो बालकों को मादक द्रव्यों का अवैध व्यापार के लिए उपयोग करते हैं उन्हें सहयोगी व षडयंत्रकारी के रूप में गिरफ्तार कर उसपर मुकदमा चलाया जा सकता है।
बाल-न्याय (बच्चों की संरक्षा एवं सुरक्षा) अधिनियम 2000
इस अधिनियम का भाग 2 (डी) मादक द्रव्यों के सेवन या व्यापार में लगे असहाय बच्चे को संरक्षा एवं सुरक्षा के लिए जरूरतमंद बच्चे के रूप में परिभाषित किया गया है।
बाल-भिक्षा
जब किसी बच्चे को भिक्षाटन के लिए विवश किया जाता या उसके लिए उपयोग किया जाता, तो वैसे व्यक्ति को निम्न कानून के तहत सजा दी जा सकती है -
बाल-न्याय अधिनियम 2000
किसी किशोर या बच्चे को रोजगार देकर या भिक्षा माँगने के लिए उपयोग किया जाता है तो उसे विशिष्ट अपराध मानकर दोषी के लिए सजा की व्यवस्था है (भाग 24)
बाल-न्याय वास्तव में भिक्षा माँगने जैसे अनैतिक कार्यों के माध्यम से बच्चों का किये जा रहे शोषण, प्रताड़ना, दुरुपयोग को संरक्षा एवं सुरक्षा के लिए जरूरतमंद बच्चे के रूप में स्वीकार करता है।
भारतीय दंड संहिता
भिक्षाटन कराने के लिए नाबालिग बच्चों का अपहरण या अपाहिज बनाना भारतीय दंड संहिता के भाग 363 ए के तहत दंडनीय अपराध है।
बाल-अपराध या कानून से संघर्षरत बच्चे
ऐसे बच्चे जो अपराध करते हैं उन्हें वयस्क व्यक्ति की तुलना में कठोर दंड से रक्षा की जाए और उसे संरक्षा एवं सुरक्षा के लिए जरूरतमंद बच्चे के रूप में स्वीकार किया जाए न कि बाल न्याय (बच्चों की संरक्षा एवं सुरक्षा) अधिनियम 2000 के तहत अपराधी माना जाए।
इस कानून के तहत वैसे प्रत्येक बच्चे जिसपर किसी अपराध के लिए मुकदमा चल रहा है उसे यह अधिकार है कि उसे अनिवार्य रूप से जमानत दी जाए बशर्ते कि उससे किसी के जीवन को या उस बच्चे को कोई खतरा न हो।
किसी तरह के अपराध में शामिल बच्चे को जेल भेजने की बजाय कानून उसके प्रति सुधारवादी रूख अपनाता है और उसे सलाह या चेतावनी देकर निश्चित अवधि को छोड़ देता या फिर उसे बाल-सुधार गृह में भेज दिया जाता है।