tag:blogger.com,1999:blog-44329970249396369152024-03-04T23:07:56.169-08:00सिसकatul pathakhttp://www.blogger.com/profile/09796496609081498445noreply@blogger.comBlogger22125tag:blogger.com,1999:blog-4432997024939636915.post-84687402434694944822010-11-15T11:19:00.000-08:002010-11-15T11:19:00.381-08:00बाल दिवस पर चाचा नेहरू की आत्मा का दर्द<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEijSt3lpbTtQ3icu4SnzyTkubExtBzgANVx3UJjjxGJjy9-K3r_AOalhQyAnBHTH9BJGiDkKk-g9gJAM48dsuK3cdZAPhRHJm5oVSbr_1OMyKZd8sEWnLB4YOGMynVKxVlmO6QuFyZTNvE/s1600-h/jawaharlal+nehru.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 272px; height: 320px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEijSt3lpbTtQ3icu4SnzyTkubExtBzgANVx3UJjjxGJjy9-K3r_AOalhQyAnBHTH9BJGiDkKk-g9gJAM48dsuK3cdZAPhRHJm5oVSbr_1OMyKZd8sEWnLB4YOGMynVKxVlmO6QuFyZTNvE/s320/jawaharlal+nehru.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5433326144208752994" /></a><br />बाल दिवस पर चाचा नेहरू की आत्मा का दर्द <br />बाल दिवस पर चाचा नेहरू की आत्मा का दर्द .. बाल दिवस बाल दिवस बच्चों का त्यौहार है। इस दिन देष भर में बच्चों के अच्छे स्वास्थय, उज्जवल भविष्य, उच्च षिक्षा, विकास की कामना की जाती है। बच्चों के लिए यह दिन आनंद और मौज मस्ती का दिन है। बाल दिवस पंडित जवाहर लाल नेहरू के जन्मदिन पर मनाया जाता है। नेहरू जी का जन्म 14 नवम्बर 1889 को हुआ था। उन्हे बच्चों से बहुत प्रेम था। यह दिन उनको श्रद्वांजिली के रूप में अर्पित है। नेहरू जी ने अपने जीवन के कीमती पल बच्चों के साथ बिताएं है। नेहरू जी का मानना था कि बच्चे ही देष का भविष्य है। खुष और स्वस्थय बच्चे ही भविष्य में एक मजबूत राश्ट्र का निर्माण कर सकते हैं। बच्चे भी उनसे बेहद प्रेम करते थे। बच्चे उन्हे प्यार से चाचा नेहरू कहकर पुकारते थे। एक बार नेहरू तमिलनाडु के दौरे पर थे और बच्चे नेहरू जी को देखने के लिए बेताव थे । वे उन्हें देखने के लिए पेड़ो पर चढ़े हुए थे। चाचा नेहरू ने यह देख पास में खड़े गुब्बारे वाले से गुब्बारे खरीद कर सभी बच्चों में बांट दिए। यह उनके जीवन का वो क्षण था जो बच्चों और नेहरू के आपसी प्रेम को दर्षाता है। बच्चो के लिए उनकी आॅखों में असीम प्रेम झलकता था। वो बच्चों के साथ हमेषा खेलने के लिए आतुर रहते थे। वे अक्सर बच्चो के बारे में कहा करते थे कि अगर तुमको भारत का भविष्य जानना है तो बच्चों की आंखों में देखो..... अगर उनकी आंखों में निराषा, भय, दर्द है तो देष भी उसी दिषा मे जायेगा अर्थात देष का भविष्य भयावह व कमजोर होगा। अगर देष का भविष्य उज्जवल बनाना है तो इन बच्चों को सभी सुविधाएं, प्यार, और अच्छा वातावरण दो.........<br />...... एक दिन चाचा नेहरू अपने निवास स्थान के बगीचे में टहल रहे थे तभी उन्हें छोटे बच्चे के रोने की आवाज़ सुनाई दी। नेहरू जी ने इधर उधर देखा तो एक पेड़ के नीचे चार पांच माह का बच्चा जोर जोर से रो रहा था। वो अकेला था उसके आस पास कोई नही था। नेहरू जी ने मन में सोचा कि सायद इसकी मां बगीचे में माली के साथ काम कर रही होगी तभी उसे यहां रखकर चली गई है। बच्चे को रोता देख नेहरू जी से रहा नही गया और उस बच्चे को अपनी बांहों में उठाकर झुलाने लगे जिससे बच्चा चुप हो गया और मुस्कुराने लगा। जब बच्चे की मां वापस आई तो उसे विष्वास नही हुआ कि उसका बच्चा चाचा नेहरू की गोद में खेल रहा है। चाचा नेहरू किसी बच्चे को रोता हुआ नही देख सकते थे। <br />चाचा नेहरू के कोट पर लगा गुलाब का फूल भी यही कहता है कि चाचा नेहरू आप बच्चों को बहुत प्यार करते हो....... दरअसल एक दिन एक बच्चे ने उनके कोट पर यह गुलाब का फूल लगाया था और तभी से गुलाब को उन्होनें अपने दिल से लगा कर रखा। ये उनका जुनून ही था बच्चों के प्रति प्रेम भाव का..............आज वो गुलाब का फूल उनके व्यक्तित्व की पहचान बन गया है बिना गुलाब के फूल के नेहरू जी का चित्र अधूरा ही लगेगा। <br />बाल दिवस मनाने का उदेष्य है कि देष के सभी बच्चों को सुख सुविधाएं, विकास योजनाए, षिक्षा व प्यार दिया जाये। परन्तु आज देष के वातावरण को देखकर कहीं न कही नेहरू जी की आत्मा रो रही होगी.............. क्योंकि आज उनके देष का भविष्य सड़कों के प्रत्येक कोनो में भीख मांग रहा है, कूड़ा कचरा बिन रहा है, कुपोषण का षिकार हो रहा है, दर दर भटक रहा है। नेहरू जी के मुताबिक बच्चों की आंखों में देखने से देष का भविष्य नजर आता है अगर इन बच्चों की आंखों में देखा जाये तो हमें इस देष का भविष्य अंधकारमय ही नजर आता है।<br />हमारे देष में दो वर्ग के बच्चे हैं एक वो जो खुषहाल जिन्दगी व्यतीत करते हैं और दूसरे वो जो सड़को पर ठोकरे खाते फिरते हैं। मैने इन दोनो जिन्दगी के बचपन को जानना चाहा... मैने देखा दोनो वर्ग के बचपन में हाथ भरे है। दोनो को जिन्दगी ने बहुत कुछ दिया। जहां एक जिंदगी के हाथ में सुख था वहीं दूसरी जिन्दगी के हाथ में दुख............<br />मैने बात की डा विकास से जो एक खुषहाल जिन्दगी व्यतीत कर रहें हैं। मैने उनसे उनके बचपन के बारे में पूछा। ‘बचपन’ सुनते ही उनके चहरे पर एक खुषी की लहर छा गई। आंखो में एक चमक आ गई। उन्होने बताया कि मेरा बचपन प्यार, खुषी और मौज मस्ती से भरा हुआ था। परिवार बालों का प्यार, स्कूल, काॅपी किताब सब था। बहुत से खिलौने, खाना पीना, नये कपड़े बहुत मजा आता था। बचपन के प्यार और सुख सुविधाओं से ही मैं आज इस मुकाम पर हूॅ। काष मैं दोवारा बचपन में जा पाता। तो यह थी खुषहाल बचपन की कहानी....... <br />वहीं जब मैने दूसरे वर्ग यानी सड़क पर भीख मांगने वाले रामू से उसके बचपन के बारे में पूछा तो यह सुन उसकी आंखें भर आई। उसने बताया पैदा होते ही वह अपनी माॅ के काम आया मुझे हाथ में लेकर लोगों की दया से उसे भीख मिलती थी। जब थोड़ा बड़ा हुआ तो मेरे हाथ में था भीख का कटोरा...., लोगों की गालियां...., फटे पुराने कपड़े....., सोने के लिए फुटपाथ....., पुलिस की लात....., लोगों से पैसे निकलवाने के लिए सरीर से खिलवाढ़, खाने में झूट्न यही मिला बचपन मे मुझे... और रही बात आज की तो आप देख सकती हैं कि आज भी मैं यहीं हूॅ उन्ही हालातों में और हमारा भविष्य है ये हमारे साथ भीख मांगते बूढ़े काका... सरकार ने तो हमारे विकास के लिए बहुत कुछ किया है जहां पहले छोटे छोटे बाजारों में भीख में एक व्यक्ति से 1 या 2 रूपये मिलते थे बही आज जगह जगह इतने बड़े माॅल, होटल, बन गये है जहा हमें 5 या 10 रूपये मिल जाते है। यही हैं हमारे प्रति हमारी सरकार के विकास कार्य........<br />यह देख और सुनकर जब मेरी आंखो में आंसु आ गये तो नेहरू जी की आत्मा पता नही किस कोने में सिसकियां भर रही होगी। यह एक विडम्बना ही है कि देष का एक बड़ा वर्ग सड़को पर भटक रहा है जिसके कारण ये बच्चे षिकार होते है कुपोष्ण के, बुरी संगत के, नषे के, खराब स्वास्थ के.... <br />घर घर जाकर सभी बच्चों को पोलियो, टेटनस, खसरा, आदि के टीके लगाये जाते है। क्या कभी सड़को पर भटक रहे इन बच्चो को भी ये टीके लगते हैं ? इन बच्चो के पास ना कोई घर है ना ठिकाना ये बच्चे अगर आज षहर के एक कोने में नजर आयेंगे तो कल दूसरे कोने में दिखाई पड़ते हैं। इन बच्चों का मुख्य संकट गरीबी है। क्यों इनके परिवार बालों को कोई काम मुहैया नही कराया जाता हैं ? जिससे ये बच्चे घरों में रह सके, अच्छा खाना खा सके, स्कूल जा सकें और स्वस्थ जीवन वयतीत कर सकें।<br />मेरा सरकार से एक ही सवाल है ‘बाल दिवस’ या अन्य षुभ अवसरों पर बच्चों के सुरक्षित भविष्य के लिए अनेको योजनाओं की धोश्णाए होती है। फिर क्यों बाद में इन्हें ठण्डे बस्ते में डाल दिया जाता है ? ये योजनाएं क्यों कार्यरत नही होती। <br />देष की गरीबी सिर्फ किसी गरीब की कुटिया में खाना खाने से दूर नही होती। देष की गरीबी दूर होती है तो गरीब के दुखों को सुखों में परिवर्तित करने से...... जो खाना आपको खिलाया गया वो कितने दुखों के भोग से उस गरीब को मिला इस बात को समझने से........... <br />अगर भगवान कृष्ण की भाॅति गरीब सुदामा के चावल खाना जानते हो तो उसके बदले वो सुख भी देना सीखो जो भगवान कृष्ण ने सुदामा को दिये थे........<br />‘बाल दिवस’ की सार्थकता तभी पूरी होगी जब सड़कों पर बच्चे नजर तो आयेंगे लेकिन भीख मांगते हुए नही बल्कि बस्ता टांगे स्कूल को जाते हुए। उस दिन मिलेगी चाचा नेहरू की आत्मा को खुशी।atul pathakhttp://www.blogger.com/profile/09796496609081498445noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4432997024939636915.post-51988599435703775762010-04-12T20:24:00.000-07:002010-04-12T20:30:51.162-07:00क्या होगा लडकों का<OBJECT class=BLOG_video_class id=BLOG_video-78f42ada846de7c4 height=266 width=320 contentId="78f42ada846de7c4"></OBJECT>atul pathakhttp://www.blogger.com/profile/09796496609081498445noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4432997024939636915.post-36227400890878013532010-04-12T00:43:00.000-07:002010-04-12T00:45:10.085-07:00क्या होगा लडकों काक्लास के 100 बच्चों में दर कुंवारे <br /><br />कालेज के 1000 छात्रों में 100 रहेंगे कुंवारे <br /><br />प्रदेश में एक करोड युवक शादी योग्य <br /><br />दस लाख को नही मिलेगी दुल्हन <br /><br />क्या होगा लडकों का <br /><br />सेक्स रेशो में भारी गिरावट <br /><br />2020 से 2030 के बीच लडकियों की संख्या आधी तक गिर सकती है <br /><br />उल्टा दहेज देंने की नौबत <br /><br />प्रदेश में लाखों लडके कुंवरे बैठे <br /><br />नही मिल रही वधू <br /><br />100 में से 10 लडके कुवारें रहेंगे <br /><br />प्रदेश में लाखों लडके नही बांध पाऐंगे सेहरा <br /><br />लडकों को शादी की चिंता <br /><br />लडकियों की कमी<br /><br />सामाजिक तानाबाना बिखरेगा <br /><br />क्या करेंगे लाखों कुंवारे <br /><br />क्या लेंगे सन्यास या एक लडकी से होगी दो लडकों की शादी या फिर संमलैंगिकता बढेगी या करेंगे अपराध<br /><br />समाज के सामने कई सवाल <br /><br />सोनोग्राफी का नतीजा आना बाकी <br /><br />लडकियों की पेट में हत्या का असर आना बाकी <br /><br />2010 में लडकियों की तादात आधी रह जाएगी <br /><br />2010 में आधे लडके कुंवारे रहेंगे <br /><br />अभी भी हालात बिगडे <br /><br />युवाओं को नही मिल रही शादी योग्य युवतियां <br /> <br /><br /><br /><br />लडकों के लिए खतरे की घंटी बज गई है। मां बाप परेशान हैं लडका शादी के लायक हो गया है लेकिन ढूंढे से भी नही मिल रही बहू। पांच पांच लडके बैठे है बिना शादी के। ये भविष्य के नही वर्तमान के हालात हैंे जी हां लाखों लडकों को शादी के लिए दुल्हन का इंतजार है। हजारों लडके 40 के बाद भी कुंवारे हैं। प्रदेश में लडकियों की संख्या हजार पर नौसौ से भी कम हैं। येे हालात तब है जब 20 साल पहले भ्रण परीक्षण की सुविधा नही थी गर्भ में ही लडकियों की पहचान संभव नही थी। आधुनिक तकनीक के चलते लडकियांे की भ्रूण हत्या के नतीजे तो अभी आना बाकी है। पिछले दस सालों में इस तकनीक से जो हुआ है उसका अनुमान लगाया जाए तो 2020 में लडकियों की तादात 1000 पर 500 से 700 से ज्यादा नही रहेगी ये हो चुका है इसलिए तैयार रहिए 2020 में दुल्हन ढूंढे से नही मिलेगी ऐंसे में सामाजिक तानाबाना बिगडेगा अराजकता फैलेगी। <br /> लडकियांे के दिन फिरने वाले हैं अब दहेज के लिए कोई उन्हे परेशान नही करेगा अब दुल्हनों को ससुराल से नही भगाया जाऐगा। मां बाप को लडकी की शादी की चिंता नही सताऐेगी। पति पत्नियों को घर से निकाल दूसरी शादी करने की धमकी नही देंगे अब वाकई नारियां पुजेगी दहेज लडके वाले नही लडकी वाले देंगे ! लडकियों को शायद ये हसीन सपना लगे लेकिन ये सपना नही है हकीकत बनते जा रहा है। जी हां वक्त बदल गया है दुल्हन बनने वाली लडकियों का टोटा पड गया है जनसंख्या की गणना अभी जारी है अगले साल देख लीजिए नतीजे क्या आते है लेकिन हम आपको अभी से अनुमानित आंकडा बता देते हैं लडकियों की संख्या 1000 लडकों पर 900 से कम हो चुकी है शायद वास्तविक हालात इससे भी ज्यादा चैकाने वाले है। जाहिर सी बात है प्रदेश के शादी योग्य एक 50 लाख लडकों में से 5 लाख को शादी के लिए दुल्हन नही मिल रही । एक रिसर्च बता रही है कुवारे लडकों की उम्र बढती जा रही है 40 , 40 साल के लडके कुंवारे बैठे है मा बाप मैरिज ब्यूरो के चक्कर काट रहे हैंे अखबारों में विज्ञापन दे रहे है लेकिन वधू नही मिल रही वैवाहिकी मै शादी योग्य लडकियों के लिए वर चाहिए के विज्ञापन कम होते जा रहे है और वधू चाहिए के विज्ञापन बढते जा रहे हैं। आपके जहन में ये सवाल जरूर आ रहा होगा कि 1991 और 2001 की जनगणना में भी लडकिया लडकों की तुलना में कम थी तब ऐंसे हालात क्यू पैदा नही हुए अब इसे जरा साइंटीफिक तरीके से समझने की कोशिश कीजिए। दरअसल 1991 की जनगणना के मुताबिक 1000 पर 945 लडकियां थी लेकिन उस वक्त शादी योग्य युवक युवतियों का अनुपात बराबर था उस वक्त अंतर बच्चे बच्चियों के अनुपात में था । 2001 में 1000 पर 927 लडकियां रह गई तब भी शादी योग्य युवतियों का अनुपात लगभग बराबर था लेकिन इसका असर अब दिख है क्योंकि ये बच्चे बडे हो गए और शादी योग्य युवक युवतियों का अनुपात 1991 और 2001 की तुलना में बराबर नही बल्कि 1000 पर 900 के लगभग पहुच गया है । अब अपने आस पास देखिए कितने लडके कुंवारे हैं और कितनी लडकिया अंतर साफ समझ आऐगा। अब सवाल ये उठता है कि 2010 में लडकियों की तादाद इतनी क्यों गिरी क्योंकि 1970 से 1980 के दशक में तो पेट में लडके लडकियों पहचान कर लडकियों को गर्भ में मार देने की तकनीक ही नही थी ये बिल्कुल सही है लेकिन तब तक नसबंदी शुरू हो चुकी थी लोगों ने इसका फायदा उठाया एक या दो लडके हुए तो नसबंदी करा ली और लडकियों को पैदा ही नही होने दिया इसी से 1000 पर 900 लडकियां रह गई। सोनोग्राफी से लडकियों की पहचान कर लडकियांे की भ्रण हत्या का असर तो अगली पीढी देखेगी अनुमान है कि आच के बच्चे जब युवा हांेंगे तो लडकिया की तादात 1000 लडकों पर 500 से 700 के बीच ही रह जाऐगी । ये हालात माथे पर सिलवटें डालने वाले है और आने वाले समय मै सामाजिक ढांचे को ही खतरें में डाल सकते हैं। हमारे भारतीय समाज में लड़कियों से भेदभाव रखने की मानो एक परंपरा रही है, कम से कम मध्यकाल से तो ऐसा है ही। तब लड़कियों को जन्म के समय ही मार दिया जाता था और ज्यादातर पुरूष युद्ध में मारे जाते थे। इस तरह बहुत हद तक जनसंख्या लिंगानुपात सामान्य बना रहता था। नवजात लड़कियों से छुटकारा पाने के लिए जहर देना या भूसे के ढेर पर दम घुटने के लिए छोड़ देना कुछ पारंपरिक तरीके थे। इन तरीकों का की जगह सोनोग्राफी आदि जैसी उच्च चिकित्सा तकनीकों ने ले लिया है, जिनसे पता चलता है कि कोख में पलने वाले बच्चे का लिंग क्या है। नतीजतन किसी नवजात की हत्या नहीं करनी पड़ती, भूण हत्या से ही काम चला लिया जाता है। इससे जनसंख्या लिंगानुपात में बड़ा अंतर आ गया है, जिसके नतीजे निश्चित तौर पर सुखद नहीं हैं। <br />सन 2001 की जनगणना में जनसंख्या का लिंगानुपात 933 महिलाएं प्रति 1000 पुरूष था। 1991 से 2001 में बच्चों के लिंगानुपात में गिरावट आई है। जो अनुपात 1991 में 945 लड़कियां प्रति 1000 लड़का था जो घटकर 2001 में 927 लड़कियां प्रति 1000 लड़कों तक रह गया। कुछ राज्यों में जनसंख्या के लिंगानुपात और राष्ट्रीय जनसंख्या लिंगानुपात में आश्चर्यजनक रूप से अंतर है। जैसे, पंजाब-798, हरियाणा 819 दिल्ली 688 गुजरात 883 हिमाचल 896 उत्तरांचल 908 राजस्थान 909 महाराष्ट्र 913 और मध्य प्रदेश में 919 महिलाएं प्रति 1000 पुरूष। लिंगानुपात में आ रही यह गिरावट कितनी चिंताजनक है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जहां 1991 में 800 से कम के लिंगानुपात वाला एक भी जिला नहीं था, वहीं 2001 में ऐसे जिलों की संख्या 14 है। इसी तरह पहले ऐसा एकमात्र जिला था जहां लिंगानुपात 800 से 850 के बीच में था लेकिन ऐसे जिले 31 हो गए हैं। देश के 116 जिलों में यह अनुपात 900 से कम है। इस तरह के चलन को सोनोग्राफी जैसी सुविधाओं ने एक अतिरिक्त गति दे दी है। सोनोग्राफी जैसी सुविधाएं लोगों को आसानी से मिल भी जाती हैं। यहां तक कि यह मध्यप्रदेश के सुदूर जिले मुरैना में भी उपलब्ध है। मई, 2005 में इस जिले के सभी गांवो में घर-घर किए गए एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि यहां का लिंगानुपात चिंताजनक स्थिति तक पहुंच गया है। मध्यप्रदेश के बारह जिलों में बाल लिंगानुपात 900 के नीचे जा पहुंचा है, लेकिन इंदौर जिला दुनिया की आधी आबादी के लिए उम्मीद जगा रहा है, जहां पिछले चार साल में बाल लिंगानुपात 836 से बढ़कर 912 हो गया है। बेटियों की कोख में ही हत्या के मामले में मध्यप्रदेश पंजाब और हरियाणा के समकक्ष पहुंचता जा रहा है। इन राज्यों में लड़कियों की लगातार घटती संख्या चिंता का विषय बनी हुई है। श्मध्यप्रदेश के बारह जिलों में प्रति हजार बालकों पर 900 से कम बालिकाएं हैं। कन्या भ्रूण हत्या एक सामाजिक समस्या है, जिसके दुष्परिणाम लगातार सामने आ रहे हैं। फिलहाल 2011 के लिए जनगणना का काम शुरू हो चुका है जिसके नतीजे चैकाने वाले ही होगे।<br /><br />अतुल पाठकatul pathakhttp://www.blogger.com/profile/09796496609081498445noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4432997024939636915.post-38411496683696756382010-04-11T21:02:00.000-07:002010-04-12T21:49:45.615-07:00लडकों के लिए खतरे की घंटी<OBJECT class=BLOG_video_class id=BLOG_video-1fd264b52e7ac5e6 height=266 width=320 contentId="1fd264b52e7ac5e6"></OBJECT>atul pathakhttp://www.blogger.com/profile/09796496609081498445noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4432997024939636915.post-6181081744575948862010-02-01T10:01:00.000-08:002010-02-01T10:07:28.513-08:00क्या ये भारत की तस्वीर है<OBJECT class=BLOG_video_class id=BLOG_video-904950789e4e3f67 height=266 width=320 contentId="904950789e4e3f67"></OBJECT>atul pathakhttp://www.blogger.com/profile/09796496609081498445noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4432997024939636915.post-14878082723260784102010-02-01T09:07:00.000-08:002010-02-01T10:10:33.080-08:00बच्चों की भडासबच्चों की भडास चिल्ड्रन्स डे पर भोपाल में आयोजित एक कार्यक्रम में प्रदेश भर के करीब 14 जिलांे के दलित बच्चे एक मंच पर इकट्ठा हुए। अपनों के बीच बच्चों की हिम्मत बढ़ी ओर इसके बाद उन्होंने अपने साथ हो रहे अन्याय को बताना शुरू कर दिया। होशंगाबाद जिले के ईश्पुर में रहने वाले यशवंत कुमार ने बताया कि दलित होने के कारण उसे मध्यान भोजन की रोटी फैंक कर दी जाती है। गांव में भी उससे लोग छुआ छूत करते हैं। मुरैना की रहने वाली नीता छारी का दर्द ये था कि उसे काफी प्रयासों के बाद भी स्कालरशिप नहीं मिल सकी। होशंगाबाद का नीलेश अपने समाज के उत्थान के लिए बच्चों को स्कूल जाने के लिए प्रेरित कर रहा है। इन बच्चों की पीड़ा ने ये जाहिर कर दिया कि तमाम सरकारी प्रयासों के बाद आज भी दलित वर्ग के छात्र छूआछत ओर दूसरी समस्याओं से ग्रसित हैं। आजादी के साठ साल बाद भी ये अपने संवैधानिक हक से महरूम हैं। आजादी के समय सन 1951 में दलित साक्षरता की दर 1 ़ 90 प्रतिशत थी जबकि गैर दलितों में 18 ़ 33 प्रतिशत साक्षरता दर थी। उस समय साक्षरता प्रतिशत का अंतर 16 प्रतिशत था। आज वर्ष 2001 की स्थिति में 54 ़69 प्रतिशत दलित साक्षर हैं ओर गैर दलितों का ये प्रतिशत 64 ़84 है। यानि आज भी दलित ओर गैर दलितों के बीच 10 ़45 प्रतिशत का अंतर है। कहने का मतलब ये कि इतने सालों में केवल 8 प्रतिशत की ही खाई पाटी जा सकी। मध्य प्रदेश के दलित बच्चों में यदि शिक्षा की स्थिति देखी जाए तो 45 प्रतिशत बच्चे कक्षा पांचवी तक पहुंचते पहुंचते स्कूल छोड़ देते हैं। शेष में से भी 45 प्रतिशत बच्चे कक्षा 6 वीं से 8 वीं तक आते आते स्कूल छोड़ देते हैं। शेष बचे 10 प्रतिशत बच्चों में से भी केवल 1 या 2 प्रतिशत बच्चे ही उच्च शिखा तक पहुंच पाते हैं। इस प्रकार दलित ग्रामीण क्षेत्र में आज भी बच्चे शाला में दर्ज तो होते हैं परंतु शिक्षा पूरी नहीं कर पाते।<br /><OBJECT class=BLOG_video_class id=BLOG_video-956972af697bba72 height=266 width=320 contentId="956972af697bba72"></OBJECT>atul pathakhttp://www.blogger.com/profile/09796496609081498445noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4432997024939636915.post-35373662462076692572010-02-01T08:02:00.000-08:002010-02-01T08:28:03.940-08:00बाल नियोजको की शवयात्रा14 साल से कम उम्र के बच्चों से मजदूरी करवाना कानून जुर्म है ये बात सभी जनाते है लेकिन खुलेआम इस कानून का उल्लंघन करने वाले बाज नही आते। बाल नियाजकों को उनकी गलती का अहसास दिलाने के लिए राजधानी के बच्चों ने उनकी शवयात्रा निकाली काले पहनकर बाल नियोजको की शवयात्रा निकालने के साथ साथ बच्चों ने गधांे और तख्तियों के जरिए भी अपना विरोध जताया। ढाबे रेस्त्रां आफिसों और घरों में बच्चों से काम न कराने के लिए सरकार ने कठोर कानून और योजनाऐ बना तो दी लेकिन इनका सही क्रियान्वयन न होने से बाल मजदूरी आज भी जारी है।<br /><OBJECT class=BLOG_video_class id=BLOG_video-1f1c2d0284b7408f height=266 width=320 contentId="1f1c2d0284b7408f"></OBJECT>atul pathakhttp://www.blogger.com/profile/09796496609081498445noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4432997024939636915.post-88074841719622677322010-01-26T21:58:00.000-08:002010-01-26T21:58:58.011-08:00कौन लिख रहा है इन नौनिहालों की तकदीरकौन लिख रहा है इन नौनिहालों की तकदीर <br />अगर वास्तव में बच्चे किसी देश का भविष्य है तो भारत का भविष्य अंधकारमय है। भविष्य का भारत अनपढ़, दुर्बल और लाचार है। कोई भी इनका अपहरण, अंग-भंग, यौन शोषण कर सकता है और बंधुआ बना सकता है।<br /><br />हर साल बच्चों के प्रिय चाचा जवाहर लाल नेहरू के जन्मदिन 14 नवंबर को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। बच्चों के लिए कार्यक्रम आयोजित किए जाते है। बड़ी-बड़ी बातें की जाती है, लेकिन साल-दर-साल उनकी स्थिति बद से बदतर होती जा रही है।<br /><br />भारत में बाल-मजदूरी पर प्रतिबंध लगे 23 साल हो गए है, लेकिन विश्व में सबसे ज्यादा बाल मजदूर यहीं हैं। इनकी संख्या करीब छह करोड़ है। खदानों, कारखानों, चाय बागानों, होटलों, ढाबों, दुकानों आदि हर जगह इन्हें कमरतोड़ मेहनत करते हुए देखा जा सकता है। कच्ची उम्र में काम के बोझ ने इनके चेहरे से मासूमियत नोंच ली है।<br /><br />इनमें से अधिकतर बच्चे शिक्षा से दूर खतरनाक और विपरीत स्थितियों में काम कर रहे है। उन्हें हिंसा और शोषण का सामना करना पड़ता है। इनमें से कई तो मानसिक बीमारियों के भी शिकार हो जाते हैं। बचपन खो करके भी इन्हे ढग से मजदूरी नहीं मिलती।<br /><br />भारत में अशिक्षा, बेरोजगारी और असंतुलित विकास के कारण बच्चों से उनका बचपन छीनकर काम की भट्ठी में झोंक दिया जाता है। इसलिए जब तक इन समस्याओं का हल नहीं किया जाएगा, तब तक बाल श्रम को रोकना असंभव है। ऐसा प्रावधान होना चाहिए कि सभी बच्चों को मुफ्त और बेहतर शिक्षा मिल सके। हर परिवार को कम से कम रोजगार, भोजन और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध हों। साथ ही बाल-मजदूरी से जुड़े सभी कानून और सामाजिक-कल्याण की योजनाएं कारगर ढंग से लागू हों।<br /><br />देश में बच्चों के स्वास्थ्य की स्थिति भी बेहद चिंताजनक है। ब्रिटेन की एक संस्था के सर्वे के अनुसार पूरी दुनिया में जितने कुपोषित बच्चे हैं, उनकी एक तिहाई संख्या भारत में है। यहा तीन साल तक के कम से कम 46 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। इसके अलावा प्रतिदिन औसतन 6,000 बच्चों की मौत होती है। इनमें 2,000 से लेकर 3,000 बच्चों की मौत कुपोषण के कारण होती है।<br /><br />भारत में बच्चों का गायब होना भी एक बड़ी समस्या है। इनमें से अधिकतर बच्चों को संगठित गिरोहों द्वारा चुराया जाता है। ये गिरोह इन मासूमों से भीख मंगवाते हैं। अब तो मासूम बच्चों से छोटे-मोटे अपराध भी कराए जाने लगे है। पिछले एक साल में दिल्ली मे दो हजार से ज्यादा बच्चे गायब हुए। इन्हें कभी तलाश ही नहीं किया गया, क्योंकि ये सभी बच्चे बेहद गरीब घरों के थे।<br /><br />यह स्थिति तो देश की राजधानी दिल्ली की है। पूरे देश की क्या स्थिति होगी, इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। अगर गायब होने वाला बच्चा समृद्ध परिवार का होता है तो शासन और प्रशासन में ऊपर से लेकर नीचे तक हड़कंप मच जाता है।<br /><br />यदि बच्चा गरीब घर से ताल्लुक रखता है तो पुलिस रिपोर्ट तक दर्ज नहीं करती। पिछले दिनों दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई थी कि वह सिर्फ अमीरों के बच्चों को तलाशने में तत्परता दिखाती है।<br /><br />राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार 80 प्रतिशत पुलिस वाले गुमशुदा बच्चों की तलाश में रुचि नहीं लेते। भारत में हर साल लगभग 45 हजार बच्चे गायब होते हैं और इनमें से 11 हजार बच्चे कभी नहीं मिलते।<br /><br />संयुक्त राष्ट्र संघ के दबाव में 2007 मे भारत में बाल अधिकार संरक्षण आयोग गठित किया गया था। आयोग ने गुमशुदा बच्चों के मामले मे राच्य सरकारों को कई सुझाव और निर्देश दिए थे। इनमें से एक गुम होने वाले हर बच्चे की एफआईआर तुरंत दर्ज किए जाने के संदर्भ में था, लेकिन सच्चाई सबके सामने है।<br /><br />बाल विवाह एक और बड़ी समस्या है। यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में जिन लड़कियों की बचपन में शादी कर दी जाती है, उनमें एक तिहाई से भी ज्यादा भारत से हैं। सालभर में लाखों बच्चिया इसके लिए अभिशप्त है। इन्हें भीषण शारीरिक और मानसिक यातना झेलनी पड़ती है।<br /><br />बाल विवाह पर प्रतिबंध के बावजूद रीति-रिवाज, पिछड़ेपन ओर रूढि़वादिता के कारण अब भी देश के कई हिस्सों में लड़कियों को विकास का अवसर दिए बिना अंधे कुंए में धकेला जा रहा है। छोटी उम्र में विवाह से कई बार लड़कियों को बाल वैधव्य का सामना करना पड़ता है, जिससे उनका जीवन मुसीबतों से घिर जाता है।<br /><br />इसके अलावा बाल विवाह से कई बार वर-वधू के शारीरिक, बौद्धिक और मानसिक विकास में विपरीत असर पड़ता है। बाल विवाह के कारण लड़कियों की पढ़ाई रुक जाती है। कम पढ़ी-लिखी महिला अंधविश्वासों और रूढि़यों से घिर जाती है। ऐसी पीढ़ी से देश व समाज हित की क्या उम्मीद की जा सकती है?<br /><br />इससे दुर्भाग्य की बात और क्या हो सकती है कि करीब 53 प्रतिशत बच्चे यौन शोषण के शिकार हैं। इनमें केवल लड़किया ही नहीं, बल्कि लड़के भी हैं। पाच साल से 12 साल की उम्र के बीच यौन शोषण के शिकार होने वाले बच्चों की संख्या सबसे अधिक है।<br /><br />कुल मिलाकर कहा जाए तो बच्चों के मामले में भारत की स्थिति सबसे खराब है। प्रशासनिक अधिकारियों को इस तरह की कोई ट्रेनिंग नहीं दी जाती कि वह बच्चों के प्रति संवेदशनील होकर अपने दायित्व को समझें। बच्चे वोट बैंक नहीं होते इसलिए राजनीतिक पार्टिया दिखावे के लिए भी उनकी चिंता नहीं करतीं। सब बातें छोड़ भी दें तो सरकार बच्चों के लिए बेसिक शिक्षा तक नहीं उपलब्ध करवा पा रही है।<br /><br />पूरे देश में स्कूलों का अब भी अभाव है। जहा स्कूल है भी, वहा कुव्यवस्था है। कहीं अध्यापकों की कमी है तो कहीं जरूरी सुविधाएं नहीं हैं। 10 सितंबर को दिल्ली के खजूरी खास स्थित राजकीय वरिष्ठ बाल/बालिका विद्यालय में परीक्षा से पूर्व मची भगदड़ में पाच छात्रों की मौत हो गई थी, जबकि 32 छात्राएं घायल हुई थीं। इसके पीछे मुख्य वजह कुव्यवस्था थी। यह स्थिति देश की राजधानी की है। इससे पता चलता है कि हम देश के भविष्य के प्रति संवेदनशील और जिम्मेदार है।<br /><br />राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य संध्या बजाज का कहना है कि गुमशुदा बच्चों के अधिकाश मामलों में रिपोर्ट दर्ज नहीं की जाती। गुम होने वाले ज्यादातर बच्चे शोषण का शिकार होते है। इसलिए हर गुमशुदा बच्चे की रिपोर्ट जरूर दर्ज की जानी चाहिए। बच्चों को शिक्षा का अधिकार मिलने से उनकी जिदंगी और बेहतर बन जाएगी।<br /><br />हम उनसे सबक क्यों नहीं लेते<br /><br />कई देशों में बच्चों के लिए अलग से लोकपाल नियुक्त हैं। सबसे पहले नार्वे ने 1981 में बाल अधिकारों की रक्षा के लिए संवैधानिक अधिकारों से युक्त लोकपाल की नियुक्ति की। बाद में आस्ट्रेलिया, कोस्टारिका, स्वीडन [1993], स्पेन [1996], फिनलैंड आदि देशों ने भी बच्चों के लिए लोकपाल की नियुक्ति की।<br /><br />लोकपाल का कर्तव्य है बाल अधिकार आयोग के अनुसार बच्चों के अधिकारों को बढ़ावा देना और उनके हितों का समर्थन करना। यही नहीं, निजी और सार्वजनिक प्राधिकारियों में बाल अधिकारों के प्रति अभिरुचि उत्पन्न करना भी उनके दायित्वों में है। कुछ देशों में तो लोकपाल सार्वजनिक विमर्शो में भाग लेकर जनता की अभिरुचि बाल अधिकारों के प्रति बढ़ाते हैं और जनता व नीति निर्धारकों के रवैये को प्रभावित करते हैं।<br /><br />बच्चों के शोषण एवं बालश्रम की समस्याओं के मद्देनजर भारत में भी बच्चों के लिए स्वतंत्र लोकपाल व्यवस्था गठित करने की मांग अक्सर की जाती रही है, लेकिन सवाल यह है कि इतने संवैधानिक उपबंधों, नियमों-कानूनों, मंत्रालयों और आयोगों के बावजूद अगर बच्चों के अधिकारों का हनन हो रहा है तो समाज भी अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकता।<br /><br />कल हर बच्चा अपनी पुरानी पीढ़ी से मांगेगा हिसाब<br /><br />कैलाश सत्यार्थी। हर साल की तरह फिर से 14 नवंबर यानी बाल दिवस आ गया। हर साल की तरह बच्चों के मसीहा चाचा नेहरु को याद करने का दिन। बच्चों को देश का भविष्य और कर्णधार बताने, उनकी तरक्की और शिक्षा के नए वायदे करने, स्कूली बच्चों के बीच कार्यक्रम करके नेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और शिक्षा-व्यापारियों के फोटो खिंचवाने और अखबार में खबर छपवाने का दिन।<br /><br />आखिर कब तक हमारा देश अपने आपको और उन मासूम बच्चों को धोखा देता रहेगा, जिन्हें अब तक वह भरपेट रोटी और आजादी जैसी बुनियादी चीजें भी मुहैया नहीं करा सका। शिक्षा, स्वास्थ्य, बचपन का स्वाभिमान और भविष्य की गारंटी तो दूर की बात है।<br /><br />दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में पांच वर्ष से कम आयु के 47 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। हाल ही में यूनीसेफ ने खुलासा किया है था कि दुनिया भर में पाच साल से कम उम्र में मौत के मुंह में समा जाने वाले लगभग 97 लाख बच्चों में से 21 लाख भारत के होते हैं। कम वजन के पैदा होने वाले साढ़े पंद्रह करोड़ शिशुओं में से साढ़े पाच करोड़ हमारे देश के होते हैं।<br /><br />पाच से छह करोड़ बच्चे बाल मजदूरी के शिकार हैं। लाखों बच्चे जानवरों से भी कम कीमत में एक से दूसरी जगह खरीदे और बेचे जाते हैं। 40-50 हजार बच्चे मोबाइल फोन, बटुए, खिलौने या किसी सामान की तरह हर साल गायब कर दिए जाते हैं। अकेले देश की राजधानी दिल्ली में हर रोज औसतन छह बच्चे गायब किए जाते हैं। सड़कों पर जबरिया भीख मंगवाने के लिए अंधा बनाकर या हाथ-पाव काटने की कहानी स्लमडाग मिलियनायर की कल्पना नहीं, बल्कि रोजमर्रा की असलियत है।<br /><br />शायद ही कोई दिन ऐसा जाता हो, जब किसी मासूम बच्ची से बलात्कार करने या उसकी हत्या कर देने की घटनाएं अखबारों में देखने को न मिलती हों। घरेलू बाल मजदूरी रोकने के लिए दो साल पहले एक कठोर कानूनी प्रावधान लाया गया था, लेकिन कभी किसी अदाकारा के घर तो कभी सरकारी अधिकारी और तथाकथित मध्यवर्गीय शिक्षित व्यवसायी के घर घरेलू बाल नौकरानियों को गर्म लोहे से दाग देने या बुरी तरह मारपीट करने की घिनौनी वारदातें आए दिन सामने आती हैं। मीडिया में थोड़ा बहुत शोर शराबा हो जाता है। अधिकारियों और स्वयंसेवी संगठनों के नेताओं के बाइट किसी चैनल में एक दो दिन चल जाते हैं और फिर वही ढाक के तीन पात।<br /><br />बाल दिवस की रस्म अदायगी करने से पहले हमें अपने अंदर झाकना चाहिए। निजी सार्वजनिक और राजनैतिक ईमानदारी की भी जाच पड़ताल करनी चाहिए। अपनी खुद की संतानों के भविष्य को संवारने के लिए जो लोग घूसखोरी और भ्रष्टाचार तक में लिप्त पाए जाते हैं, वे दूसरों के बच्चों को गुलाम बनाने से नहीं कतराते। अपने बच्चों को महंगे से महंगे अंग्रेजी स्कूलों में दाखिल कराने के लिए जमीन-आसमान एक कर देते हैं, लेकिन किसी चाय के ढाबे पर बेशर्मी से बच्चे के हाथ की चाय पीते हुए या जूते पालिश कराते हुए उन्हें यह एहसास तक नहीं होता कि भारत का भविष्य सिर्फ उनके बाल-गोपाल ही नहीं, दूसरे बच्चे भी हैं।<br /><br />सार्वजनिक जीवन में दोहरे मानदंड की इससे बड़ी मिसाल क्या होगी कि नेता-अधिकारी और अधिकारों की बात करने वाले बुद्धिजीवी कुतर्को का अंबार लगा देते हैं। मसलन, गरीब का बच्चा काम नहीं करेगा तो भूखा मर जाएगा या लड़की वेश्यावृत्ति करने लगेगी, इसलिए बेहतर है कि वह बाल मजदूरी करे। कुछ लोग कहते हैं कि देश के पास इतने संसाधन कहा कि हर बच्चे का गुणवत्तापूर्ण पढ़ाई मुहैया कराई जा सके। यदि गरीब बच्चों को मंहगे अंग्रेजी स्कूलों में जबरन भर्ती कराया जाएगा तो वहा शिक्षा का स्तर खराब हो जाएगा आदि।<br /><br />आखिर हम कब तक बच्चों के वर्तामन और भविष्य के साथ पाखंड करते रहेंगे? कब तक उनको धोखा देते रहेंगे? यह सच है कि अधिकाश बच्चे आज अपने आकाओं से जवाब मागने का माद्दा नहीं रखते, लेकिन आने वाले कल की असलियत आज से एकदम अलग होगी यह तय समझिए। सदियों से चले आ रहे पाखंड और बचपन विरोधी परंपराओं को कुछ बच्चों ने चुनौती देना शुरू कर दिया है। यह सैलाब रुकने वाला नहीं हैं। कल हर बच्चा अपनी पुरानी पीढ़ी से हिसाब जरूर मागेगा, तब हम उन्हें क्या जवाब देंगे?<br />साभार - दैनिक जागरणatul pathakhttp://www.blogger.com/profile/09796496609081498445noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4432997024939636915.post-25892292584605608892010-01-26T20:21:00.001-08:002010-01-26T20:21:01.081-08:00फुटपाथ पर भटकी मासूम हसरतों की उड़ानजिंदगी में भले ही कितनी भी दुश्वारियां हों, लेकिन सपने देखने में फुटपाथ पर रहने वाले बच्चे आम बच्चों से कहीं भी पीछे नहीं हैं। एक सर्वेक्षण रिपोर्ट से उजागर हुआ है कि 14 साल से अधिक उम्र के करीब 50 फीसदी फुटपाथी बच्चे जीवन में खूब धन कमाने की चाह रखते हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें मादक पदार्र्थो की तस्करी और चोरी जैसे अपराधों का सहारा लेने से भी परहेज नहीं है। महिला व बाल विकास मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान की ओर से किए गए इस सर्वेक्षण के अनुसार, ऊंची हसरतों को पूरा करने के लिए कई नौनिहाल जहां बाल मजदूरी का अभिशाप झेल रहे हैं, वहीं कुछ बच्चे चोरी का सामान बेचकर या तस्करी के धंधे से पैसा कमा रहे हैं। <br /><br />ज्यादा पैसा, बड़ी कार : <br /><br />सर्वेक्षण में 14 साल तक की उम्र के 43 फीसदी फुटपाथी बच्चों ने बताया कि खूब पैसा कमाना उनके जीवन का मकसद है। 12 से 16 फीसदी बच्चों ने बड़ी कार चलाने की इच्छा जताई। आठ साल की उम्र के 23 फीसदी से ज्यादा बच्चों का कहना था कि वे स्कूल जाना चाहते हैं और पढ़-लिखकर डॉक्टर बनना चाहते हैं। <br /><br />तस्करी में लिप्त : <br /><br />केन्द्र सरकार के समेकित कार्यक्रमों के तहत संचालित केंद्रों में पंजीकृत बच्चों के बारे में स्थानीय सलाहकारों से पूछे गए सवालों पर आधारित इस अध्ययन में कहा गया है कि लगभग 13 फीसदी फुटपाथी बच्चे मादक पदार्र्थो की तस्करी में लिप्त हैं। आठ फीसदी बच्चे नशीली दवाओं का अवैध व्यापार करते हैं। करीब 26 फीसदी बच्चे दिनभर में औसतन 25 रुपए से ज्यादा कमा लेते हैं। हालांकि, 16 फीसदी बच्चे ऐसे भी हैं, जिन्हें कम कमाई पर माता-पिता या संबंधियों की पिटाई का शिकार होना पड़ता है।<br /><br />कहां बीत रहा है बचपन <br /><br />ढाबे या ऑटो गैराज : 45 फीसदी<br /><br />रद्दी बटोरना : 37.7 फीसदी<br /><br />घरेलू नौकरी : 31 फीसदी<br /><br />जूता पॉलिश : 26 फीसदी<br /><br />हॉकर : 13.11<br /><br />(नोट- कुछ बच्चे एक से ज्यादा काम करते हैं।)atul pathakhttp://www.blogger.com/profile/09796496609081498445noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4432997024939636915.post-63425065198725617422010-01-26T20:21:00.000-08:002010-01-26T20:21:00.303-08:00फुटपाथ पर भटकी मासूम हसरतों की उड़ानजिंदगी में भले ही कितनी भी दुश्वारियां हों, लेकिन सपने देखने में फुटपाथ पर रहने वाले बच्चे आम बच्चों से कहीं भी पीछे नहीं हैं। एक सर्वेक्षण रिपोर्ट से उजागर हुआ है कि 14 साल से अधिक उम्र के करीब 50 फीसदी फुटपाथी बच्चे जीवन में खूब धन कमाने की चाह रखते हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें मादक पदार्र्थो की तस्करी और चोरी जैसे अपराधों का सहारा लेने से भी परहेज नहीं है। महिला व बाल विकास मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान की ओर से किए गए इस सर्वेक्षण के अनुसार, ऊंची हसरतों को पूरा करने के लिए कई नौनिहाल जहां बाल मजदूरी का अभिशाप झेल रहे हैं, वहीं कुछ बच्चे चोरी का सामान बेचकर या तस्करी के धंधे से पैसा कमा रहे हैं। <br /><br />ज्यादा पैसा, बड़ी कार : <br /><br />सर्वेक्षण में 14 साल तक की उम्र के 43 फीसदी फुटपाथी बच्चों ने बताया कि खूब पैसा कमाना उनके जीवन का मकसद है। 12 से 16 फीसदी बच्चों ने बड़ी कार चलाने की इच्छा जताई। आठ साल की उम्र के 23 फीसदी से ज्यादा बच्चों का कहना था कि वे स्कूल जाना चाहते हैं और पढ़-लिखकर डॉक्टर बनना चाहते हैं। <br /><br />तस्करी में लिप्त : <br /><br />केन्द्र सरकार के समेकित कार्यक्रमों के तहत संचालित केंद्रों में पंजीकृत बच्चों के बारे में स्थानीय सलाहकारों से पूछे गए सवालों पर आधारित इस अध्ययन में कहा गया है कि लगभग 13 फीसदी फुटपाथी बच्चे मादक पदार्र्थो की तस्करी में लिप्त हैं। आठ फीसदी बच्चे नशीली दवाओं का अवैध व्यापार करते हैं। करीब 26 फीसदी बच्चे दिनभर में औसतन 25 रुपए से ज्यादा कमा लेते हैं। हालांकि, 16 फीसदी बच्चे ऐसे भी हैं, जिन्हें कम कमाई पर माता-पिता या संबंधियों की पिटाई का शिकार होना पड़ता है।<br /><br />कहां बीत रहा है बचपन <br /><br />ढाबे या ऑटो गैराज : 45 फीसदी<br /><br />रद्दी बटोरना : 37.7 फीसदी<br /><br />घरेलू नौकरी : 31 फीसदी<br /><br />जूता पॉलिश : 26 फीसदी<br /><br />हॉकर : 13.11<br /><br />(नोट- कुछ बच्चे एक से ज्यादा काम करते हैं।)atul pathakhttp://www.blogger.com/profile/09796496609081498445noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4432997024939636915.post-31348535895726412312010-01-24T09:22:00.000-08:002010-02-01T09:56:54.537-08:00हमे कुछ करना होगा<OBJECT class=BLOG_video_class id=BLOG_video-c5e1f9ebbb3131b7 height=266 width=320 contentId="c5e1f9ebbb3131b7"></OBJECT>atul pathakhttp://www.blogger.com/profile/09796496609081498445noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4432997024939636915.post-34627123138035505062009-12-11T10:36:00.000-08:002010-02-01T14:58:08.639-08:00फुटपाथ पर जिंदगी<OBJECT class=BLOG_video_class id=BLOG_video-fc290fc91a63d961 height=266 width=320 contentId="fc290fc91a63d961"></OBJECT>atul pathakhttp://www.blogger.com/profile/09796496609081498445noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4432997024939636915.post-78791447597885061522009-04-11T00:18:00.000-07:002010-02-01T00:55:11.819-08:00कहां हैं हम<OBJECT class=BLOG_video_class id=BLOG_video-61678598f650f914 height=266 width=320 contentId="61678598f650f914"></OBJECT>atul pathakhttp://www.blogger.com/profile/09796496609081498445noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4432997024939636915.post-5499689697813370372009-02-03T20:09:00.000-08:002010-01-26T20:12:25.005-08:00सभ्य समाज की गंदगी<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg2QFQjHQwRhiKMpDY03BoC0AceyVVSECezZJ7fm1IcX_nVmc4Y_dri0Js6_u4NpiRDXX1uCwHsNTX9yErspb6gFa37BN8YBsUdwZ89gW7gbCDdai9IPVDjqtyJ6X2h-bz3sg2cYhN9zDc/s1600-h/05%2520Street%2520children_thumb.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 122px; height: 182px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg2QFQjHQwRhiKMpDY03BoC0AceyVVSECezZJ7fm1IcX_nVmc4Y_dri0Js6_u4NpiRDXX1uCwHsNTX9yErspb6gFa37BN8YBsUdwZ89gW7gbCDdai9IPVDjqtyJ6X2h-bz3sg2cYhN9zDc/s320/05%2520Street%2520children_thumb.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5431267189521136882" /></a><br />हमारे सभ्य शहरों की असभ्य सड़कों पर केवल मंहगी गाड़ियां ही गरीबों और बेसहारा बच्चों की जिंदगी को नहीं रौंदती है. भारतीय फुटपाथ पर जिंदगी बिताने वाले 55 प्रतिशत से अधिक बच्चे यौन प्रताड़ना का शिकार हैं. यौन शोषित इन बच्चों की उम्र 5 से 12 साल के बीच की है।<br />महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के एक अध्ययन से यह पता चला है। यह अध्ययन देश के 13 राज्यों में 12 हजार 447 बच्चों पर किया गया है। जिन राज्यों में सर्वे हुआ है उनमें आंध्र प्रदेष, असम, बिहार, दिल्ली, गोवा, गुजरात, केरल, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, मिजोरम, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, और पश्चिम बंगाल हैं। यह खबर शायद सभी समाचारपत्र में नहीं छपी हो, पर खबर महत्पूर्ण मुद्दे की है। फुटपाथ पर जीवन बसर करने वाले तक सरकार अजादी के छह दशक बीत जाने पर भी नहीं पहुंच पाई। फुटपाथ पर बसर करने वालों की एक अच्छी तदात है।<br />जरा गौर करें 5 से 12 साल की बीच की उम्र ही क्या होती है। नन्हीं उम्र। समाज की अच्छी और बुरी बातों से अनजान उम्र। फुटपाथ पर रहने वाले कॉन्वेंट स्कूलों में पढ़ने के सपने भी नहीं देखते है। पर आजकल कॉन्वेंट स्कूलों के 12 साल के बच्चों को सेक्स की अच्छी-खासी समझ विकसित हो जाती है। यह उनके संगत का असर होता है। पर फुटपाथी बच्चे क्या करते है। कहीं भीख मांगते हैं, तो कहीं मजबूर मां-बाप के साथ दुत्कार भरी जिदंगी जीते हैं। ट्रेनों में यात्रियों के कचरे साफ कर पैसा मांगते हैं। कुछ समाान बेचते है। चैराहों पर रूकने वाली गाड़ियों के शीशे साफ कर अंदर बैठै व्यक्ति से कुछ देने की याचना करते है। इनका बसेरा यत्र-तत्र, अस्थायी होता है। इनका यौन शोषण कौन करता है। घनी बस्तियों और सभ्य समाज से दूर रहने वाले इन बच्चों के बीच कोई बाहर का व्यक्ति शायद ही इनका दुःख जानने समझने आता होगा। यह वर्ग समाज के मुख्य धारा से हमेषा कटा रहा है। साधारण-सी बात है। फुटपाथ पर ही जिंदगी गुजर-बसर करने वाले वयस्क ही इनका यौन शोषण करते हैं।<br />यहां की बात यहीं रह जाती है। सभ्य समाज इन्हें गंदगी मानता है। गंदगी में घिनौने कृत्य के कौन-कौन से बुलबुले उग रहे हैं, इससे सभ्य समाज को मतलब नहीं है। पर इसका मतलब यह नहीं कि हम इसके प्रति आंख मूंद लें। छोटी-छोटी अपराधिक गतिविधियों को अंजाम देते-देते फुटपाथ के कई बच्चे वयस्क होते-होते बडे़ अपराधी बन जाते हैं। फुटपाथ से हट कर आम आदमी को बीच पहुंच कर असमाजिक गतिविधियों को अंजाम देते है।<br />स्लम इलाकों के बच्चों को पढ़ा-लिखा कर समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए कई स्वयंसेवी संस्थाएं सक्रिय हंै। सरकार अनुदान भी देती है। पर फुटपाथ पर जीवन गुजर बसर करने वाले हमेषा उपेक्षित रहे हैं। कितने बच्चे फुटपाथ पर जीवन गुजारते हैं, इसका अनुमानित आंकड़ा मिल सकता है, प्रमाणिक नहीं। कभी-कभार खबरें आती हैं कि स्थनीय निकाय विशेषकर महानगर पालिका, जिला पंचायत ऐसे घुमंतु बच्चों को पढ़ा कर समाज से मुख्य धारा से जोड़ने की योजना बनाती है। फंड तय होता है। बच्चों का सर्वे होता है। योजना को कार्यरूप देने की शुरूआत से पहले ही वित्तिय वर्श समाप्त हो जाता हैं। फिर सब कुछ नये सिरे से शुरू करने की बात की जाती है। इसी बीच सर्वे और पढ़ाने की पहल तक निर्धारित फंड का काफी पैसा खर्च हो चुका रहता है। सरकार एनजीओ के माध्यम से भी ऐसे बच्चों के कल्याण पर भारी भरकम राशि लुटा रही है। सब कुछ चलता रहता है, पर सकारात्मक कुछ भी नहीं होता हैं।<br />ऐसे बच्चों को का भला तब तक नहीं होगा, तब सरकार इनके जिम्मेदार अभिभावकत्व के रूप में सामने न आए। समाज कल्याण विभाग देष के कई जिलों में छोटे और बड़ों बच्चों के लिए अवासीय व्यवस्था उपलब्ध कराता है। पढ़ाता है। फुटपाथी बच्चों के लिए यह वरदान साबित हो सकता है, पर इसका लाभ नहीं मिल पा रहा हैं। ऐसे सरकारी आश्रय में गरीब बच्चे तो रहते हैं, पर पर फुटपाथी बच्चे नहीं। यदि इन बच्चों को कोई स्वयंसेवी सरकारी आश्रय में पहुंचाना भी चाहे तो वह सफल नहीं हो सकता है, क्योकि ऐसे आश्रय में जाति वर्ग में दायरे में आने की खास बंदिषे हैं। यदि फुटपाथी संबंधित जाति का भी हो, तो प्रमाणपत्र किस आधार पर बनेगा। इन बच्चों के अभिभावकों के पास न तो राषनकार्ड होता है और न ही मतदाता पहचान पत्र। देष के प्रखंड और तहसील कार्यालयो में आसानी से ऐसे प्रमाणपत्र बनते भीन हीं है। अब, जब मंत्रालय ने ऐसे बच्चों पर सर्वे करकार कड़वी सच्चाई को जान लिया है, तो बिना शर्त इनकी समुचित परवरिश के लिए ठोस कदम उठाये। जिससे कि इनका अब और यौन शोषण नहीं और ये बड़े होकर मन में कुंडा लिए समाज से अलग रहकर समाज और देश के लिए घातक नागरिक न बनें।atul pathakhttp://www.blogger.com/profile/09796496609081498445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4432997024939636915.post-19490725150523350812009-01-25T19:45:00.000-08:002010-01-31T19:54:15.692-08:00कौन लिख रहा है इन नौनिहालों की तकदीर<OBJECT class=BLOG_video_class id=BLOG_video-7db5057d90814e9 height=266 width=320 contentId="7db5057d90814e9"></OBJECT>atul pathakhttp://www.blogger.com/profile/09796496609081498445noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4432997024939636915.post-15462967213592390182009-01-02T20:17:00.000-08:002010-01-26T20:18:13.247-08:00स्ट्रीट चिल्ड्रेन• एक अरब आबादी वाला भारत सबसे बड़ा लोकतंत्र है जिसमें बच्चों की आबादी 40 करोड़ के करीब है, <br />• भारत में एड्स से संक्रमित 55,764 मामलों में 2,112 बच्चे हैं, <br />• एचआईवी/एड्स संक्रमण के 4 करोड़ 20 लाख मामलों में 14 फीसदी मामले ऐसे बच्चों के अनुमानित हैं जो 14 साल से कम उम्र के हैं, <br />• आईएलओ द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह पाया गया कि संक्रमित माता-पिता के बच्चों के साथ काफी भेदभाव किया जाता है जिनमें 35% को मूलभूत सुविधा से वंचित होना पड़ता है और 17% को अपनी आमदनी के लिए घटिया स्तर के काम करने पड़ते हैं, <br />• भारत में बाल श्रम की जटिल समस्या है जो गरीबी से गहरे तौर पर जुड़ी है, <br />• वर्ष 1991 की जनगणना के मुताबिक भारत में 11.28 मिलियन बाल श्रमिक हैं, <br />• बाल श्रम का 85% संख्य़ा ग्रामीण इलाकों में पाया जाता है। यह संख्या पिछ्ले दशक में बढ़ी है, <br />• स्ट्रीट चिल्ड्रेन ऐसे बच्चे होते हैं जिनका अपने परिवारों से ज्यादा वास्तविक घर सड़क होता है। यह ऐसी स्थिति है जिसमें उन्हें कोई सुरक्षा, निगरानी या जिम्मेदार वयस्कों से कोई दिशा-निर्देश नहीं मिलती। मानवाधिकार संगठन के अनुमान के मुताबिक भारत में करीब 1 करोड़ 80 बच्चे सड़कों पर रहते या काम करते हैं। इनमें से ज्यादातर बच्चे अपराधों, यौनवृत्तियों, सामूहिक हिंसा तथा नशीले पदार्थों के शिकार हैं। <br />स्ट्रीट चिल्ड्रेन एक ऐसा शब्द है जो शहर की सड़कों पर रहने वाले बच्चों के लिए प्रयोग होता है। वे परिवार की देखभाल और संरक्षण से वंचित होते हैं। सड़कों पर रहने वाले ज्यादातर बच्चे 5 से 17 वर्ष के हैं और अलग-अलग शहरों में उनकी जनसंख्या भिन्न है। स्ट्रीट चिल्ड्रेन निर्जन भवनों, गत्तों के बक्सों, पार्कों अथवा सड़कों पर रहते हैं। स्ट्रीट चिल्ड्रेन को परिभाषित करने के लिए काफी कुछ लिखा जा चुका है पर बड़ी कठिनाई यह है कि उनका कोई ठीक-ठीक वर्ग नहीं है, बल्कि उनमें से कुछ जहां थोड़े समय सड़कों पर बिताते हैं और बुरे चरित्र वाले वयस्कों के साथ सोते हैं। वहीं कुछ ऐसे हैं जो सारा समय सड़कों पर ही बिताते हैं और उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं होता।<br />यूनिसेफ द्वारा दी गई परिभाषा व्यापक रूप से मान्य है, जिसके तहत स्ट्रीट चिल्ड्रेन को दो मुख्य वर्गों में बांटा गया है- <br />• सड़कों पर रहने वाले बच्चे भीख मांगने से लेकर बिक्री करने जैसे कुछ आर्थिक क्रियाकलापों में लिप्त रहते हैं। उनमें से ज्यादातर शाम को घर जाकर अपनी आमदनी को अपने परिवारों में दे देते हैं। वे स्कूल जा सकते हैं तथा उनमें परिवार से जुड़े रहने की भी भावना हो सकती है। परिवार की आर्थिक बदहाली के कारण ये बच्चे आखिरकार स्थाई तौर पर सड़कों पर की ही जिंदगी चुन लेते हैं। <br />• सड़कों पर रहने वाले बच्चे वास्तव में सड़कों पर (या आम पारिवारिक माहौल से बाहर) ही रहते हैं। उनके बीच पारिवारिक बंधन मौजूद हो सकता है, पर यह काफी हल्का होता है जो आकस्मिकतौर पर या कभी-कभी ही कायम होता है।atul pathakhttp://www.blogger.com/profile/09796496609081498445noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4432997024939636915.post-69394466965593946082009-01-02T19:28:00.000-08:002010-01-26T19:29:29.618-08:00भीख मांगता बच्चाधुप में<br /><br />झुलसता हुआ<br /><br />रेत की आग में<br /><br />जलता हुआ<br /><br />एक भीख मांगता बच्चा<br /><br /><br /><br /><br />करुण स्वर में<br /><br />पुकार कर<br /><br />दर्शनार्थियों को <br /><br />आकर्षित करता<br /><br />एक भीख मांगता बच्चा<br /><br /><br /><br /><br />वक्त के <br /><br />क्रूर चक्र में<br /><br />भाग्य रेखाओं की<br /><br />उलझन में<br /><br />उलझा हुआ <br /><br />एक भीख मांगता बच्चा<br /><br /><br /><br /><br />अपंगता का <br /><br />वरदान लिए<br /><br />भाग्य में श्राप लिए<br /><br />आसमान की ओर निहारता<br /><br />एक भीख मांगता बच्चाatul pathakhttp://www.blogger.com/profile/09796496609081498445noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4432997024939636915.post-73051272811341110672008-10-28T20:04:00.000-07:002010-01-28T20:05:56.582-08:00बाल-न्याय (संरक्षा एवं सुरक्षा) अधिनियमबाल-न्याय (संरक्षा एवं सुरक्षा) अधिनियम 2000 तरुण या बालक (जो 18 वर्ष से कम आयु के हों) के निम्न जरूरतों से संबंधितहैः<br />• संरक्षा एवं सुरक्षा की जरूरत<br />• कानूनी कार्रवाई का सामना<br /> इन बच्चों को संरक्षा एवं सुरक्षा की जरूरत<br />2 (डी) के अनुसार जिन बच्चों को संरक्षा एवं सुरक्षा की जरूरत है, उससे मतलब है -<br />• जो बिना घर के या जीविका के साधन के बिना पाया जाता है।<br />• जिसके माँ-बाप या संरक्षक देखभाल करने में सक्षम न हों।<br />• जो अनाथ या जिसके माँ-बाप ने परित्यक्त कर दिया हो या जो खो गया हो या घर से भागा हुआ बच्चा या फिर काफी जाँच पड़ताल के बाद भी जिसके माँ-बाप का पता नहीं लगाया जा सकता।<br />• जो संभोग या अनैतिक कार्य से शोषित, सताया हुआ या पीड़ित हो या जो इस तरह के शोषण के प्रति संवेदनशील हों।<br />• जो नशा या बाल-व्यापार से पीड़ित हों<br />• जो किसी सशस्त्र संघर्ष, नागरिक प्रतिरोध या प्राकृतिक आपदाओं के शिकार हों।<br />बाल-कल्याण समिति: इस कानून के अनुसार प्रत्येक राज्य सरकार को, राज्य के प्रत्येक जिले या जिला-समूह में बालकों की देखभाल, सुरक्षा, इलाज, विकास एवं पुनर्वास के लिए एक या एक से अधिक बाल-सरंक्षा एवं सुरक्षा समिति का गठन करना है। यह समिति जरूरतमंद बच्चों के मूलभूत जरूरत की व्यवस्था करेगी और उसके मौलिक अधिकारों की रक्षा करेगी।<br />समिति के समक्ष प्रस्तुत<br />कोई भी बालक जिसे संरक्षा एवं सुरक्षा की जरूरत है उसे समिति के समक्ष - विशेष बाल पुलिस ईकाई, निर्दिष्ट पुलिस अधिकारी, लोक सेवक, चाइल्ड लाइन, राज्य सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त एवं पंजीकृत स्वयं सेवी संस्था, सामाजिक कार्यकर्ता या राज्य सरकार द्वारा अधिकृत कोई अन्य व्यक्ति या संस्थाएँ या स्वयं बालक / बालिका उपस्थित होकर अपनी बात कह सकता है।<br />घटना का सुनने जानने के बाद बाल कल्याण समिति उस बच्चे को बाल सुधार गृह भेजने का निर्देश दे सकती है और उस मामले की त्वरित गति से जाँच के लिए किसी सामाजिक कार्यकर्ता या बाल कल्याण अधिकारी को अधिकृत कर सकती है।<br />जाँच के बाद यदि यह पाया जाता है कि संबंधित बालक का न तो परिवार और न ही कोई प्रत्यक्ष आधार है तो उसे बाल सुधार गृह या आश्रय गृह में तब तक रखने के लिए कहा जा सकता है जब तक कि या तो उसके पुनर्वास के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं हो जाती या फिर वह 18 वर्ष के अधिक का नहीं हो जाता।<br />कानूनी कार्रवाइयों का सामना कर रहे बच्चे<br />कानून से संघर्षरत बच्चे का मतलब है ऐसे बच्चे जिसपर किसी गैर कानूनी कार्य को करने का अपराध है।<br />बाल-न्याय बोर्ड<br />प्रत्येक राज्य सरकार राज्य के प्रत्येक जिले या जिला-समूह में बालकों की देखभाल, सुरक्षा, इलाज, विकास एवं पुनर्वास के लिए एक या एक से अधिक बाल सरंक्षा एवं सुरक्षा समिति का गठन करे ताकि कानून से संघर्षरत बच्चे को जमानत दी जा सके और उस बच्चे के हित में उस मामले का निपटारा किया जा सके।<br />मादक द्रव्य तथा पदार्थों का दुरुपयोग<br />मादक द्रव्य तथा विषैले पदार्थ अधिनियम 1985<br />यह कानून मादक द्रव्य तथा विषैले पदार्थों के उत्पादन, अपने पास रखने, उसे कहीं लाने-ले जाने, खरीद-बिक्री को अवैध घोषित करता है, तथा इस कार्य में संलग्न व्यक्ति आदि या इसके अवैध व्यापारी के लिए दंड का प्रावधान करता है।<br />अपराधी के द्वारा हथियार या हिंसा का उपयोग करना या उपयोग की धमकी देना, नाबालिगों का इस अपराध के लिए उपयोग करना, किसी शिक्षण संस्थान या समाज सेवा केन्द्र में अपराध करने वाले के लिए अधिक दंड का प्रावधान है।<br />मादक द्रव्य तथा नशीले पदार्थों के अवैध व्यापार निवारण अधिनियम 1988<br />इस कानून के अनुसार वैसे व्यक्ति जो बालकों को मादक द्रव्यों का अवैध व्यापार के लिए उपयोग करते हैं उन्हें सहयोगी व षडयंत्रकारी के रूप में गिरफ्तार कर उसपर मुकदमा चलाया जा सकता है।<br />बाल-न्याय (बच्चों की संरक्षा एवं सुरक्षा) अधिनियम 2000<br />इस अधिनियम का भाग 2 (डी) मादक द्रव्यों के सेवन या व्यापार में लगे असहाय बच्चे को संरक्षा एवं सुरक्षा के लिए जरूरतमंद बच्चे के रूप में परिभाषित किया गया है।<br />बाल-भिक्षा<br />जब किसी बच्चे को भिक्षाटन के लिए विवश किया जाता या उसके लिए उपयोग किया जाता, तो वैसे व्यक्ति को निम्न कानून के तहत सजा दी जा सकती है -<br />बाल-न्याय अधिनियम 2000<br />किसी किशोर या बच्चे को रोजगार देकर या भिक्षा माँगने के लिए उपयोग किया जाता है तो उसे विशिष्ट अपराध मानकर दोषी के लिए सजा की व्यवस्था है (भाग 24)<br />बाल-न्याय वास्तव में भिक्षा माँगने जैसे अनैतिक कार्यों के माध्यम से बच्चों का किये जा रहे शोषण, प्रताड़ना, दुरुपयोग को संरक्षा एवं सुरक्षा के लिए जरूरतमंद बच्चे के रूप में स्वीकार करता है।<br />भारतीय दंड संहिता<br />भिक्षाटन कराने के लिए नाबालिग बच्चों का अपहरण या अपाहिज बनाना भारतीय दंड संहिता के भाग 363 ए के तहत दंडनीय अपराध है।<br />बाल-अपराध या कानून से संघर्षरत बच्चे<br />ऐसे बच्चे जो अपराध करते हैं उन्हें वयस्क व्यक्ति की तुलना में कठोर दंड से रक्षा की जाए और उसे संरक्षा एवं सुरक्षा के लिए जरूरतमंद बच्चे के रूप में स्वीकार किया जाए न कि बाल न्याय (बच्चों की संरक्षा एवं सुरक्षा) अधिनियम 2000 के तहत अपराधी माना जाए।<br />इस कानून के तहत वैसे प्रत्येक बच्चे जिसपर किसी अपराध के लिए मुकदमा चल रहा है उसे यह अधिकार है कि उसे अनिवार्य रूप से जमानत दी जाए बशर्ते कि उससे किसी के जीवन को या उस बच्चे को कोई खतरा न हो।<br />किसी तरह के अपराध में शामिल बच्चे को जेल भेजने की बजाय कानून उसके प्रति सुधारवादी रूख अपनाता है और उसे सलाह या चेतावनी देकर निश्चित अवधि को छोड़ देता या फिर उसे बाल-सुधार गृह में भेज दिया जाता है।atul pathakhttp://www.blogger.com/profile/09796496609081498445noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4432997024939636915.post-17683679334148214422008-09-28T20:06:00.000-07:002010-01-28T20:07:54.433-08:00फुटपाथ पर रहने वाले बच्चेफुटपाथ पर रहने वाले ज्यादातर बच्चे घर से भागे हुए होते हैं। वे अपने घरों से जीवन में अच्छे अवसर प्राप्त करने के लिए या शहरी ठाट-बाट के लिए या पढ़ाई करने के लिए अपने अभिभावकों द्वारा मिल रहे दबाव, पारिवारिक लड़ाई झगड़ों की वजह से घर से शहर भाग जाते हैं और जहाँ वे बहुत ही दयनीय स्थिति में जीवन व्यतीत करते हैं।<br />फुटपाथ के बच्चे कभी भी खराब नहीं होते। वह जिन परिस्थितियों में रहते हैं वे परिस्थितियाँ ही खराब होती हैं। इन्हें दो वक्त का खाना नहीं मिलता और बुरे व्यवहार के शिकार होते हैं । एक बार वे रास्ते में आ जाते हैं तो वे दुर्व्यवहार और उससे सम्बन्धित समस्याओ में फँस जाते हैं। यह छोटे बच्चे अपने से बड़े बच्चों के सम्पर्क में आकर कचड़ा चुनने या दूसरे काम जो बिना किसी कष्ट से मिल जाता है या गैर कानूनी काम जैसे जेब काटना, भीख माँगना, नशीले सामानों को बेचने जैसे कामों में लग जाते हैं।<br /> <br />बच्चे निम्न कारणों से घर से भागते हैं -<br />• बेहतर जीवन अवसर के लिए<br />• शहरी चकाचौंध<br />• बड़ों का दबाव<br />• खराब पारिवारिक सम्बन्ध<br />• अपने माता-पिता द्वारा परित्यक्त किये जाने पर<br />• माता-पिता तथा अध्यापकों द्वारा मारे जाने के डर से<br />• यौन सम्बन्धी दुर्व्यवहार<br />• जातीय भेदभाव<br />• लिंग संबंधी भेदभाव<br />• अपंगता<br />• एचआईवी/ एड्स की वजह से भेदभाव<br />फुटपाथी बच्चों का यौन शोषण, प्रेक्षण गृह में लाया गया (एक अध्ययन, वर्ष 2003-04) (रिपोर्टः दिप्ती पगारे, जी. एस. मीणा, आर. सी. जीलोहा व एम. एम. सिंह, भारतीय बाल चिकित्सा, सामुदायिक औषधि एवं मनोचिकित्सा विभाग, मौलाना आज़ाद महाविद्यालय। इस अध्ययन के दौरान दिल्ली के एक प्रेक्षण केन्द्र में रहने वाले बालकों के बीच किये गये सर्वेक्षण के दौरान यह बात सामने आई कि उसमें रहने वाले अधिकतर बच्चे फुटपाथ पर रहने वाले थे और उनमें से 38.1 प्रतिशत बच्चे यौन सम्बन्धी दुर्व्यवहार के शिकार थे। उन लोगों का जब अस्पतालों में जाँच कराया गया तो उनमे से 61.1 प्रतिशत बच्चों के शरीर पर जख्म के निशान थे जबकि 40.2 प्रतिशत बच्चों ने उनके साथ हुए यौन दुर्व्यवहार निशान दिखाए। 44 प्रतिशत बच्चों के साथ जबरन यौन दुर्व्यवहार किये और उनमें से 25 प्रतिशत बच्चों में यौन सम्बन्धी रोगों के निशान पाये गये थे। इन ब्चों के यौन शोषण जैसी घटनाएँ अधिकतर अपरिचित व्यक्ति द्वारा ही किया गया था।atul pathakhttp://www.blogger.com/profile/09796496609081498445noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4432997024939636915.post-59614748190478542142008-08-26T20:10:00.001-07:002010-01-28T20:11:15.567-08:00सम्प्रेक्षण गृह एवं किशोर गृह तथा विशेष गृहसम्प्रेक्षण गृह एवं किशोर गृह तथा विशेष गृह <br /> <br />किशोर न्याय अधिनियम, 2000 एवं संशोधित अधिनियम, 2006 के अन्तर्गत बच्चों को निम्नानुसार दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाकर पृथक-पृथक गृहों की व्यवस्था की गई है :-<br />1. देखरेख और संरक्षण के लिए जरूरतमंद बालक - किशोर न्याय अधिनियम की धारा 2(घ) में देखरेख व संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चों की दी गई परिभाषा में निम्न बच्चों को चिन्हीकृत किया गया हैं, जिनके प्रकरणों की सुनवाई व निपटान सम्बन्धित बाल कल्याण समिति द्वारा किया जाता है :-<br />1. जो किसी घर या निश्चित निवास स्थान और जीवन निर्वाह के बिना पाया जाता है।<br /> 1(a) जो भिक्षावृति करता पाया गया है या स्ट्रीट चिल्ड्रन हो या कार्यशील बालक (बाल श्रमिक) हो।<br />2. जो एक व्यक्ति (चाहे बालक का संरक्षक हो या न हो) के साथ रहता है और ऐसे व्यक्ति ने, -<br />1. बालक को जान से मारने या क्षति पहुंचाने की धमकी दी है और धमकी के दिये जाने की एक युक्तियुक्त सम्भाव्यता है, या<br />2. किसी दूसरे बालक या बालकों को जान से मार डाला है या गाली दिया है या उसका या उनकी उपेक्षा की हे और उस व्यक्ति द्वारा प्रश्नगत बालक को जान से मार डाले जाने, गाली दिये जाने की युक्तियुक्त सम्भाव्यता है।<br />3. जिसको मानसिक और शारीरिक रूप से धमकी दी जाती है या बीमार सहायता करने या देख-रेख करने वाले किसी को भी न रखने वाले टर्मिनल रोग या असाध्य रोग से ग्रस्त होने वाला बालक। <br />4. जिसके एक माता-पिता या संरक्षक है और ऐसे माता-पिता या संरक्षक बालक पर नियन्त्रण रख पाने के लिए अनुपयुक्त है या असमर्थ बना दिया गया है। <br />5. जिसके माता-पिता नहीं है और कोई एक देख-रेख करना चाह रहा है या जिसके माता-पिता ने उसका त्याग कर दिया है या समर्पित कर दिया है या जो खो गया है या भाग गया है और जिसके माता-पिता को युक्तियुक्त जाँच के पश्चात् नहीं पाया जाता है। <br />6. जिसका लैंगिक दुरूपयोग या अवैधानिक कृत्यों प्रयोजनार्थ गम्भीर तौर पर दुरूपयोग किए जाने, सताए जाने या शोषण किये जाने की सम्भावना है या किया जा रहा है। <br />7. जिसको भेद्य (Vulnerable) पाया जाता है और औषधि दुरूपयोग या दुर्व्यापार करने में उत्प्रेरित किये जाने की सम्भावना है। <br />8. जिसे अन्त:करण के विरूद्ध लाभ के लिए गाली दिया जा रहा है या गाली दिये जाने की सम्भवना है। <br />9. जो किसी सशस्त्र संघर्ष, सिविल उपद्रव या प्राकृतिक आपदा का शिकार है। <br />2. विधि से संघर्षरत किशोर - वे बच्चे, जिन्होंने संविधान सम्मत तरीके से स्थापित विधि का जाने-अनजाने उल्लंघन किया हो। इनके प्रकरणों में सुनवाई व निपटान सम्बन्धित किशोर न्याय बोर्ड द्वारा किया जाता है। <br /> <br />किशोर न्याय अधिनियम के अन्तर्गत बच्चों की श्रेणी अनुसार प्रकरणों की सुनवाई व निपटान तक पृथक-पृथक गृहों का प्रावधान किया गया है, जो निम्नानुसार है :-<br />1. सम्प्रेक्षण गृह - अधिनियम की धारा 8 के अन्तर्गत विधि के साथ संघर्षरत बालक/ बालिकाओं हेतु सम्प्रेक्षण गृह का प्रावधान है। इन गृहों में विधि से संघर्षरत बालक/ बालिकाओं को किशोर न्याय बोर्ड के आदेशों से उनकी जांच लम्बित रहने/ जमानत होने / अंतिम निपटान तक रखा जाता है। इन गृहों में विधि से संघर्षरत बालक/ बालिकाओं हेतु सभी सुविधाएं यथा भोजन, वस्त्र, चिकित्सा, शिक्षा आदि की नि:शुल्क व्यवस्था राज्य सरकार द्वारा की जाती है। <br />2. बाल गृह - अधिनियम की धारा 34 के अन्तर्गत राज्य में देखभाल व संरक्षण की आवश्यकता वाले बालक/ बालिकाओं हेतु बालगृह की स्थापना व पंजीयन का प्रावधान है। इन गृहों में देखभाल व संरक्षण की आवश्यकता वाले बालक/ बालिकाओं को बाल कल्याण समिति के आदेश से 18 वर्ष तक की आयु होने तक रखने का प्रावधान है। इन संस्थाओं में बालक/ बालिकाओं के विकास एवं पुनर्वास की पूर्ण व्यवस्था के साथ-साथ भोजन, वस्त्र, शिक्षा, प्रशिक्षण की नि:शुल्क व्यवस्था की जाती है। <br />3. विशेष गृह - किशोर न्याय अधिनियम की धारा 9 में किशोर न्याय बोर्ड से सजा प्राप्त विधि के साथ संघर्षरत बच्चों को 18 वर्ष की आयु पूर्ण होने तक रखने के लिए विशेष गृहों का प्रावधान किया गया है। <br />4. अधिनियम की धारा 48 के अन्तर्गत विमन्दित बालक/ बालिका के समुचित संरक्षण, देखभाल व उपचार हेतु राजकीय विमन्दित महिला व बाल गृह, सेठी कॉलोनी, जयपुर को मान्यता प्राप्त संस्थान प्रमाणित किया हुआ है।atul pathakhttp://www.blogger.com/profile/09796496609081498445noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4432997024939636915.post-74948755693219988962008-08-26T20:10:00.000-07:002010-01-28T20:11:14.907-08:00सम्प्रेक्षण गृह एवं किशोर गृह तथा विशेष गृहसम्प्रेक्षण गृह एवं किशोर गृह तथा विशेष गृह <br /> <br />किशोर न्याय अधिनियम, 2000 एवं संशोधित अधिनियम, 2006 के अन्तर्गत बच्चों को निम्नानुसार दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाकर पृथक-पृथक गृहों की व्यवस्था की गई है :-<br />1. देखरेख और संरक्षण के लिए जरूरतमंद बालक - किशोर न्याय अधिनियम की धारा 2(घ) में देखरेख व संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चों की दी गई परिभाषा में निम्न बच्चों को चिन्हीकृत किया गया हैं, जिनके प्रकरणों की सुनवाई व निपटान सम्बन्धित बाल कल्याण समिति द्वारा किया जाता है :-<br />1. जो किसी घर या निश्चित निवास स्थान और जीवन निर्वाह के बिना पाया जाता है।<br /> 1(a) जो भिक्षावृति करता पाया गया है या स्ट्रीट चिल्ड्रन हो या कार्यशील बालक (बाल श्रमिक) हो।<br />2. जो एक व्यक्ति (चाहे बालक का संरक्षक हो या न हो) के साथ रहता है और ऐसे व्यक्ति ने, -<br />1. बालक को जान से मारने या क्षति पहुंचाने की धमकी दी है और धमकी के दिये जाने की एक युक्तियुक्त सम्भाव्यता है, या<br />2. किसी दूसरे बालक या बालकों को जान से मार डाला है या गाली दिया है या उसका या उनकी उपेक्षा की हे और उस व्यक्ति द्वारा प्रश्नगत बालक को जान से मार डाले जाने, गाली दिये जाने की युक्तियुक्त सम्भाव्यता है।<br />3. जिसको मानसिक और शारीरिक रूप से धमकी दी जाती है या बीमार सहायता करने या देख-रेख करने वाले किसी को भी न रखने वाले टर्मिनल रोग या असाध्य रोग से ग्रस्त होने वाला बालक। <br />4. जिसके एक माता-पिता या संरक्षक है और ऐसे माता-पिता या संरक्षक बालक पर नियन्त्रण रख पाने के लिए अनुपयुक्त है या असमर्थ बना दिया गया है। <br />5. जिसके माता-पिता नहीं है और कोई एक देख-रेख करना चाह रहा है या जिसके माता-पिता ने उसका त्याग कर दिया है या समर्पित कर दिया है या जो खो गया है या भाग गया है और जिसके माता-पिता को युक्तियुक्त जाँच के पश्चात् नहीं पाया जाता है। <br />6. जिसका लैंगिक दुरूपयोग या अवैधानिक कृत्यों प्रयोजनार्थ गम्भीर तौर पर दुरूपयोग किए जाने, सताए जाने या शोषण किये जाने की सम्भावना है या किया जा रहा है। <br />7. जिसको भेद्य (Vulnerable) पाया जाता है और औषधि दुरूपयोग या दुर्व्यापार करने में उत्प्रेरित किये जाने की सम्भावना है। <br />8. जिसे अन्त:करण के विरूद्ध लाभ के लिए गाली दिया जा रहा है या गाली दिये जाने की सम्भवना है। <br />9. जो किसी सशस्त्र संघर्ष, सिविल उपद्रव या प्राकृतिक आपदा का शिकार है। <br />2. विधि से संघर्षरत किशोर - वे बच्चे, जिन्होंने संविधान सम्मत तरीके से स्थापित विधि का जाने-अनजाने उल्लंघन किया हो। इनके प्रकरणों में सुनवाई व निपटान सम्बन्धित किशोर न्याय बोर्ड द्वारा किया जाता है। <br /> <br />किशोर न्याय अधिनियम के अन्तर्गत बच्चों की श्रेणी अनुसार प्रकरणों की सुनवाई व निपटान तक पृथक-पृथक गृहों का प्रावधान किया गया है, जो निम्नानुसार है :-<br />1. सम्प्रेक्षण गृह - अधिनियम की धारा 8 के अन्तर्गत विधि के साथ संघर्षरत बालक/ बालिकाओं हेतु सम्प्रेक्षण गृह का प्रावधान है। इन गृहों में विधि से संघर्षरत बालक/ बालिकाओं को किशोर न्याय बोर्ड के आदेशों से उनकी जांच लम्बित रहने/ जमानत होने / अंतिम निपटान तक रखा जाता है। इन गृहों में विधि से संघर्षरत बालक/ बालिकाओं हेतु सभी सुविधाएं यथा भोजन, वस्त्र, चिकित्सा, शिक्षा आदि की नि:शुल्क व्यवस्था राज्य सरकार द्वारा की जाती है। <br />2. बाल गृह - अधिनियम की धारा 34 के अन्तर्गत राज्य में देखभाल व संरक्षण की आवश्यकता वाले बालक/ बालिकाओं हेतु बालगृह की स्थापना व पंजीयन का प्रावधान है। इन गृहों में देखभाल व संरक्षण की आवश्यकता वाले बालक/ बालिकाओं को बाल कल्याण समिति के आदेश से 18 वर्ष तक की आयु होने तक रखने का प्रावधान है। इन संस्थाओं में बालक/ बालिकाओं के विकास एवं पुनर्वास की पूर्ण व्यवस्था के साथ-साथ भोजन, वस्त्र, शिक्षा, प्रशिक्षण की नि:शुल्क व्यवस्था की जाती है। <br />3. विशेष गृह - किशोर न्याय अधिनियम की धारा 9 में किशोर न्याय बोर्ड से सजा प्राप्त विधि के साथ संघर्षरत बच्चों को 18 वर्ष की आयु पूर्ण होने तक रखने के लिए विशेष गृहों का प्रावधान किया गया है। <br />4. अधिनियम की धारा 48 के अन्तर्गत विमन्दित बालक/ बालिका के समुचित संरक्षण, देखभाल व उपचार हेतु राजकीय विमन्दित महिला व बाल गृह, सेठी कॉलोनी, जयपुर को मान्यता प्राप्त संस्थान प्रमाणित किया हुआ है।atul pathakhttp://www.blogger.com/profile/09796496609081498445noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4432997024939636915.post-50402147781087055352008-08-25T20:08:00.000-07:002010-01-28T20:10:25.058-08:00एचआईवी / एड्सएचआईवी / एड्स <br /><br />एचआईवी / एड्स के होने का सम्बन्ध उम्र , चमड़ा, रंग, जाति , वर्ग , धर्म, किसी भौगोलिक स्थान, नैतिक विचलन एवं अच्छी व बुरी आदतों से नहीं है। कोई भी व्यक्ति एचआईवी का शिकार हो सकता है। एचआईवी के कारण ही एड्स फैलता है। एचआईवी से पीड़ित व्यक्ति के शरीर से निकले द्रव्य, जैसे वीर्य, संसर्ग द्वार से निकले द्रव्य, खून या माँ के दूध के संपर्क में आने से फैल सकता है। इसके अलावा, एचआईवी पीड़ित व्यक्ति के खून के संपर्क में सुई के साथ नशे के लिए प्रयुक्त की सुई, गोदने व शरीर में भोकने में प्रयुक्त सुई से भी एचआईवी फैलता है।<br />करोडों बच्चे आज या तो एचआईवी / एड्स के शिकार हैं या उससे प्रभावित हैं। माता - पिता के असमय देहान्त के कारण अनेक बच्चे अनाथ हो जाते है। माता से बच्चे को एचआईवी / एड्स का फैलना साधारण बात है। लेकिन बच्चों के साथ होने वाले यौन दुर्व्यवहार के कारण भी बहुत सारे बच्चे इस रोग के शिकार हो जाते हैं। बच्चों एवं युवाओं में नशीले पदार्थों की वजह से भी इस रोग के होने का खतरा रहता है। इन परिस्थितियों में बच्चों को एचआईवी/एड्स के बारे में जानकारी नहीं देना ठीक नहीं है। इसके अतिरिक्त उन्हें अपने आपको इस रोग से किस तरह सुरक्षित रखना चाहिये, इस बारे में भी जानकारी प्राप्त करने के अधिकार से वंचित नहीं करना चाहिए।<br />एशिया में चीन के बाद भारत में एचआईवी/एड्स पीड़ित लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है। संयुक्त राष्ट्र एड्स संस्था के अनुसार भारत में 0 से 14 वर्ष उम्र के लगभग 0.16 करोड़ बच्चे एचआईवी के शिकार हैं।<br />एक समाचार रिपोर्ट के अनुसार केरल के पराप्पाननगडी के एक सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालय में 6 वर्षीय बबीता राज को स्कूल प्रबंधन ने इसलिए उसके स्कूल आने पर रोक लगा दी क्योंकि उसके पिता की मृत्यु एड्स के कारण हो गई थी। सामाजिक कार्यकर्ताओं की मध्यस्थता के बाद भी उस बच्चे की एचआईवी जाँच कराई गई जिसमें पाया गया कि उसे एचआईवी नहीं है, इसके बावजूद स्कूल प्रबंधन ने उसे स्कूल में दाखिला नहीं दिया। साथ ही, स्थानीय सरकारी विद्यालय में भी उस बच्ची को दाखिला नहीं दिया गया।<br />स्रोतः फ्यूचर फॉरसेकेन , ह्यूमेन राईट्स वाच, पृष्ठ संख्या 73, 2004<br />हमें यह समझने की आवश्यकता है कि एचआईवी पीड़ित बच्चे के छूने से या उसके पास बैठने से, उसे आलिंगन करने से, या उसके साथ खेलने से यह रोग नहीं फैलता है।<br />यह सही है कि बच्चों के जानने के अधिकार व सहभागिता मुख्य रूप से इस बात आधारित है कि उसकी रुचि किस काम में है। इस तरह बच्चों को यौन सम्बन्ध, प्रजनन स्वास्थ्य या एचआईवी/ एड्स के बारे में जानकारी देने उम्र सीमा को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। जबकि इस संबंध में सच यह है कि हम बच्चों के इस तरह के प्रश्नों का सामना करने के लिए स्वयं ही मानसिक रूप से तैयार नही हैं।<br />पहले लोगों को एचआईवी / एड्स के बारे में बतलाने के बजाय उन बच्चों को, जिनके परिवार में एचआईवी/ एड्स के रोगी होते थे, उन्हें स्कूलों से बाहर निकाल दिया जाता था। साथ ही, उन्हें एचआईवी/ एड्स रोग की वजह से मूलभूत सेवाएँ व मौलिक अधिकार के उपभोग से वंचित कर दिया जाता था। भारतीय संविधान के अनुसार सभी व्यक्ति को समानता एवं भेदभाव मुक्त रहने का अधिकार है और जो कोई भी असमानता एवं भेदभाव को बढ़ावा देता है वह दंड का भागी हो सकता है।<br />अगर हमें यह बात मालूम होती है कि किसी व्यक्ति को एचआईवी पॉजिटिव है तो हमें उस व्यक्ति को उचित इलाज की सुविधा उपलब्ध करानी चाहिए ताकि स्वस्थ हो सके और इस रोग का प्रसार अन्य लोगों तक न हो सके। अगर उन बच्चों को जिन्हें यह बीमारी होने की संभावना है, विद्यालय से निकाल दिया गया तो हम उनके स्वास्थ्य के बारे में खबर नहीं रख सकते और उनकी मदद भी नहीं कर सकते। इससे खतरा और बढ़ जाता है। भेदभाव के द्वारा दिनोदिन बढ़ते इस रोग को समाप्त नहीं किया जा सकता है।atul pathakhttp://www.blogger.com/profile/09796496609081498445noreply@blogger.com0