सम्प्रेक्षण गृह एवं किशोर गृह तथा विशेष गृह
किशोर न्याय अधिनियम, 2000 एवं संशोधित अधिनियम, 2006 के अन्तर्गत बच्चों को निम्नानुसार दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाकर पृथक-पृथक गृहों की व्यवस्था की गई है :-
1. देखरेख और संरक्षण के लिए जरूरतमंद बालक - किशोर न्याय अधिनियम की धारा 2(घ) में देखरेख व संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चों की दी गई परिभाषा में निम्न बच्चों को चिन्हीकृत किया गया हैं, जिनके प्रकरणों की सुनवाई व निपटान सम्बन्धित बाल कल्याण समिति द्वारा किया जाता है :-
1. जो किसी घर या निश्चित निवास स्थान और जीवन निर्वाह के बिना पाया जाता है।
1(a) जो भिक्षावृति करता पाया गया है या स्ट्रीट चिल्ड्रन हो या कार्यशील बालक (बाल श्रमिक) हो।
2. जो एक व्यक्ति (चाहे बालक का संरक्षक हो या न हो) के साथ रहता है और ऐसे व्यक्ति ने, -
1. बालक को जान से मारने या क्षति पहुंचाने की धमकी दी है और धमकी के दिये जाने की एक युक्तियुक्त सम्भाव्यता है, या
2. किसी दूसरे बालक या बालकों को जान से मार डाला है या गाली दिया है या उसका या उनकी उपेक्षा की हे और उस व्यक्ति द्वारा प्रश्नगत बालक को जान से मार डाले जाने, गाली दिये जाने की युक्तियुक्त सम्भाव्यता है।
3. जिसको मानसिक और शारीरिक रूप से धमकी दी जाती है या बीमार सहायता करने या देख-रेख करने वाले किसी को भी न रखने वाले टर्मिनल रोग या असाध्य रोग से ग्रस्त होने वाला बालक।
4. जिसके एक माता-पिता या संरक्षक है और ऐसे माता-पिता या संरक्षक बालक पर नियन्त्रण रख पाने के लिए अनुपयुक्त है या असमर्थ बना दिया गया है।
5. जिसके माता-पिता नहीं है और कोई एक देख-रेख करना चाह रहा है या जिसके माता-पिता ने उसका त्याग कर दिया है या समर्पित कर दिया है या जो खो गया है या भाग गया है और जिसके माता-पिता को युक्तियुक्त जाँच के पश्चात् नहीं पाया जाता है।
6. जिसका लैंगिक दुरूपयोग या अवैधानिक कृत्यों प्रयोजनार्थ गम्भीर तौर पर दुरूपयोग किए जाने, सताए जाने या शोषण किये जाने की सम्भावना है या किया जा रहा है।
7. जिसको भेद्य (Vulnerable) पाया जाता है और औषधि दुरूपयोग या दुर्व्यापार करने में उत्प्रेरित किये जाने की सम्भावना है।
8. जिसे अन्त:करण के विरूद्ध लाभ के लिए गाली दिया जा रहा है या गाली दिये जाने की सम्भवना है।
9. जो किसी सशस्त्र संघर्ष, सिविल उपद्रव या प्राकृतिक आपदा का शिकार है।
2. विधि से संघर्षरत किशोर - वे बच्चे, जिन्होंने संविधान सम्मत तरीके से स्थापित विधि का जाने-अनजाने उल्लंघन किया हो। इनके प्रकरणों में सुनवाई व निपटान सम्बन्धित किशोर न्याय बोर्ड द्वारा किया जाता है।
किशोर न्याय अधिनियम के अन्तर्गत बच्चों की श्रेणी अनुसार प्रकरणों की सुनवाई व निपटान तक पृथक-पृथक गृहों का प्रावधान किया गया है, जो निम्नानुसार है :-
1. सम्प्रेक्षण गृह - अधिनियम की धारा 8 के अन्तर्गत विधि के साथ संघर्षरत बालक/ बालिकाओं हेतु सम्प्रेक्षण गृह का प्रावधान है। इन गृहों में विधि से संघर्षरत बालक/ बालिकाओं को किशोर न्याय बोर्ड के आदेशों से उनकी जांच लम्बित रहने/ जमानत होने / अंतिम निपटान तक रखा जाता है। इन गृहों में विधि से संघर्षरत बालक/ बालिकाओं हेतु सभी सुविधाएं यथा भोजन, वस्त्र, चिकित्सा, शिक्षा आदि की नि:शुल्क व्यवस्था राज्य सरकार द्वारा की जाती है।
2. बाल गृह - अधिनियम की धारा 34 के अन्तर्गत राज्य में देखभाल व संरक्षण की आवश्यकता वाले बालक/ बालिकाओं हेतु बालगृह की स्थापना व पंजीयन का प्रावधान है। इन गृहों में देखभाल व संरक्षण की आवश्यकता वाले बालक/ बालिकाओं को बाल कल्याण समिति के आदेश से 18 वर्ष तक की आयु होने तक रखने का प्रावधान है। इन संस्थाओं में बालक/ बालिकाओं के विकास एवं पुनर्वास की पूर्ण व्यवस्था के साथ-साथ भोजन, वस्त्र, शिक्षा, प्रशिक्षण की नि:शुल्क व्यवस्था की जाती है।
3. विशेष गृह - किशोर न्याय अधिनियम की धारा 9 में किशोर न्याय बोर्ड से सजा प्राप्त विधि के साथ संघर्षरत बच्चों को 18 वर्ष की आयु पूर्ण होने तक रखने के लिए विशेष गृहों का प्रावधान किया गया है।
4. अधिनियम की धारा 48 के अन्तर्गत विमन्दित बालक/ बालिका के समुचित संरक्षण, देखभाल व उपचार हेतु राजकीय विमन्दित महिला व बाल गृह, सेठी कॉलोनी, जयपुर को मान्यता प्राप्त संस्थान प्रमाणित किया हुआ है।
Tuesday, August 26, 2008
सम्प्रेक्षण गृह एवं किशोर गृह तथा विशेष गृह
सम्प्रेक्षण गृह एवं किशोर गृह तथा विशेष गृह
किशोर न्याय अधिनियम, 2000 एवं संशोधित अधिनियम, 2006 के अन्तर्गत बच्चों को निम्नानुसार दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाकर पृथक-पृथक गृहों की व्यवस्था की गई है :-
1. देखरेख और संरक्षण के लिए जरूरतमंद बालक - किशोर न्याय अधिनियम की धारा 2(घ) में देखरेख व संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चों की दी गई परिभाषा में निम्न बच्चों को चिन्हीकृत किया गया हैं, जिनके प्रकरणों की सुनवाई व निपटान सम्बन्धित बाल कल्याण समिति द्वारा किया जाता है :-
1. जो किसी घर या निश्चित निवास स्थान और जीवन निर्वाह के बिना पाया जाता है।
1(a) जो भिक्षावृति करता पाया गया है या स्ट्रीट चिल्ड्रन हो या कार्यशील बालक (बाल श्रमिक) हो।
2. जो एक व्यक्ति (चाहे बालक का संरक्षक हो या न हो) के साथ रहता है और ऐसे व्यक्ति ने, -
1. बालक को जान से मारने या क्षति पहुंचाने की धमकी दी है और धमकी के दिये जाने की एक युक्तियुक्त सम्भाव्यता है, या
2. किसी दूसरे बालक या बालकों को जान से मार डाला है या गाली दिया है या उसका या उनकी उपेक्षा की हे और उस व्यक्ति द्वारा प्रश्नगत बालक को जान से मार डाले जाने, गाली दिये जाने की युक्तियुक्त सम्भाव्यता है।
3. जिसको मानसिक और शारीरिक रूप से धमकी दी जाती है या बीमार सहायता करने या देख-रेख करने वाले किसी को भी न रखने वाले टर्मिनल रोग या असाध्य रोग से ग्रस्त होने वाला बालक।
4. जिसके एक माता-पिता या संरक्षक है और ऐसे माता-पिता या संरक्षक बालक पर नियन्त्रण रख पाने के लिए अनुपयुक्त है या असमर्थ बना दिया गया है।
5. जिसके माता-पिता नहीं है और कोई एक देख-रेख करना चाह रहा है या जिसके माता-पिता ने उसका त्याग कर दिया है या समर्पित कर दिया है या जो खो गया है या भाग गया है और जिसके माता-पिता को युक्तियुक्त जाँच के पश्चात् नहीं पाया जाता है।
6. जिसका लैंगिक दुरूपयोग या अवैधानिक कृत्यों प्रयोजनार्थ गम्भीर तौर पर दुरूपयोग किए जाने, सताए जाने या शोषण किये जाने की सम्भावना है या किया जा रहा है।
7. जिसको भेद्य (Vulnerable) पाया जाता है और औषधि दुरूपयोग या दुर्व्यापार करने में उत्प्रेरित किये जाने की सम्भावना है।
8. जिसे अन्त:करण के विरूद्ध लाभ के लिए गाली दिया जा रहा है या गाली दिये जाने की सम्भवना है।
9. जो किसी सशस्त्र संघर्ष, सिविल उपद्रव या प्राकृतिक आपदा का शिकार है।
2. विधि से संघर्षरत किशोर - वे बच्चे, जिन्होंने संविधान सम्मत तरीके से स्थापित विधि का जाने-अनजाने उल्लंघन किया हो। इनके प्रकरणों में सुनवाई व निपटान सम्बन्धित किशोर न्याय बोर्ड द्वारा किया जाता है।
किशोर न्याय अधिनियम के अन्तर्गत बच्चों की श्रेणी अनुसार प्रकरणों की सुनवाई व निपटान तक पृथक-पृथक गृहों का प्रावधान किया गया है, जो निम्नानुसार है :-
1. सम्प्रेक्षण गृह - अधिनियम की धारा 8 के अन्तर्गत विधि के साथ संघर्षरत बालक/ बालिकाओं हेतु सम्प्रेक्षण गृह का प्रावधान है। इन गृहों में विधि से संघर्षरत बालक/ बालिकाओं को किशोर न्याय बोर्ड के आदेशों से उनकी जांच लम्बित रहने/ जमानत होने / अंतिम निपटान तक रखा जाता है। इन गृहों में विधि से संघर्षरत बालक/ बालिकाओं हेतु सभी सुविधाएं यथा भोजन, वस्त्र, चिकित्सा, शिक्षा आदि की नि:शुल्क व्यवस्था राज्य सरकार द्वारा की जाती है।
2. बाल गृह - अधिनियम की धारा 34 के अन्तर्गत राज्य में देखभाल व संरक्षण की आवश्यकता वाले बालक/ बालिकाओं हेतु बालगृह की स्थापना व पंजीयन का प्रावधान है। इन गृहों में देखभाल व संरक्षण की आवश्यकता वाले बालक/ बालिकाओं को बाल कल्याण समिति के आदेश से 18 वर्ष तक की आयु होने तक रखने का प्रावधान है। इन संस्थाओं में बालक/ बालिकाओं के विकास एवं पुनर्वास की पूर्ण व्यवस्था के साथ-साथ भोजन, वस्त्र, शिक्षा, प्रशिक्षण की नि:शुल्क व्यवस्था की जाती है।
3. विशेष गृह - किशोर न्याय अधिनियम की धारा 9 में किशोर न्याय बोर्ड से सजा प्राप्त विधि के साथ संघर्षरत बच्चों को 18 वर्ष की आयु पूर्ण होने तक रखने के लिए विशेष गृहों का प्रावधान किया गया है।
4. अधिनियम की धारा 48 के अन्तर्गत विमन्दित बालक/ बालिका के समुचित संरक्षण, देखभाल व उपचार हेतु राजकीय विमन्दित महिला व बाल गृह, सेठी कॉलोनी, जयपुर को मान्यता प्राप्त संस्थान प्रमाणित किया हुआ है।
किशोर न्याय अधिनियम, 2000 एवं संशोधित अधिनियम, 2006 के अन्तर्गत बच्चों को निम्नानुसार दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाकर पृथक-पृथक गृहों की व्यवस्था की गई है :-
1. देखरेख और संरक्षण के लिए जरूरतमंद बालक - किशोर न्याय अधिनियम की धारा 2(घ) में देखरेख व संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चों की दी गई परिभाषा में निम्न बच्चों को चिन्हीकृत किया गया हैं, जिनके प्रकरणों की सुनवाई व निपटान सम्बन्धित बाल कल्याण समिति द्वारा किया जाता है :-
1. जो किसी घर या निश्चित निवास स्थान और जीवन निर्वाह के बिना पाया जाता है।
1(a) जो भिक्षावृति करता पाया गया है या स्ट्रीट चिल्ड्रन हो या कार्यशील बालक (बाल श्रमिक) हो।
2. जो एक व्यक्ति (चाहे बालक का संरक्षक हो या न हो) के साथ रहता है और ऐसे व्यक्ति ने, -
1. बालक को जान से मारने या क्षति पहुंचाने की धमकी दी है और धमकी के दिये जाने की एक युक्तियुक्त सम्भाव्यता है, या
2. किसी दूसरे बालक या बालकों को जान से मार डाला है या गाली दिया है या उसका या उनकी उपेक्षा की हे और उस व्यक्ति द्वारा प्रश्नगत बालक को जान से मार डाले जाने, गाली दिये जाने की युक्तियुक्त सम्भाव्यता है।
3. जिसको मानसिक और शारीरिक रूप से धमकी दी जाती है या बीमार सहायता करने या देख-रेख करने वाले किसी को भी न रखने वाले टर्मिनल रोग या असाध्य रोग से ग्रस्त होने वाला बालक।
4. जिसके एक माता-पिता या संरक्षक है और ऐसे माता-पिता या संरक्षक बालक पर नियन्त्रण रख पाने के लिए अनुपयुक्त है या असमर्थ बना दिया गया है।
5. जिसके माता-पिता नहीं है और कोई एक देख-रेख करना चाह रहा है या जिसके माता-पिता ने उसका त्याग कर दिया है या समर्पित कर दिया है या जो खो गया है या भाग गया है और जिसके माता-पिता को युक्तियुक्त जाँच के पश्चात् नहीं पाया जाता है।
6. जिसका लैंगिक दुरूपयोग या अवैधानिक कृत्यों प्रयोजनार्थ गम्भीर तौर पर दुरूपयोग किए जाने, सताए जाने या शोषण किये जाने की सम्भावना है या किया जा रहा है।
7. जिसको भेद्य (Vulnerable) पाया जाता है और औषधि दुरूपयोग या दुर्व्यापार करने में उत्प्रेरित किये जाने की सम्भावना है।
8. जिसे अन्त:करण के विरूद्ध लाभ के लिए गाली दिया जा रहा है या गाली दिये जाने की सम्भवना है।
9. जो किसी सशस्त्र संघर्ष, सिविल उपद्रव या प्राकृतिक आपदा का शिकार है।
2. विधि से संघर्षरत किशोर - वे बच्चे, जिन्होंने संविधान सम्मत तरीके से स्थापित विधि का जाने-अनजाने उल्लंघन किया हो। इनके प्रकरणों में सुनवाई व निपटान सम्बन्धित किशोर न्याय बोर्ड द्वारा किया जाता है।
किशोर न्याय अधिनियम के अन्तर्गत बच्चों की श्रेणी अनुसार प्रकरणों की सुनवाई व निपटान तक पृथक-पृथक गृहों का प्रावधान किया गया है, जो निम्नानुसार है :-
1. सम्प्रेक्षण गृह - अधिनियम की धारा 8 के अन्तर्गत विधि के साथ संघर्षरत बालक/ बालिकाओं हेतु सम्प्रेक्षण गृह का प्रावधान है। इन गृहों में विधि से संघर्षरत बालक/ बालिकाओं को किशोर न्याय बोर्ड के आदेशों से उनकी जांच लम्बित रहने/ जमानत होने / अंतिम निपटान तक रखा जाता है। इन गृहों में विधि से संघर्षरत बालक/ बालिकाओं हेतु सभी सुविधाएं यथा भोजन, वस्त्र, चिकित्सा, शिक्षा आदि की नि:शुल्क व्यवस्था राज्य सरकार द्वारा की जाती है।
2. बाल गृह - अधिनियम की धारा 34 के अन्तर्गत राज्य में देखभाल व संरक्षण की आवश्यकता वाले बालक/ बालिकाओं हेतु बालगृह की स्थापना व पंजीयन का प्रावधान है। इन गृहों में देखभाल व संरक्षण की आवश्यकता वाले बालक/ बालिकाओं को बाल कल्याण समिति के आदेश से 18 वर्ष तक की आयु होने तक रखने का प्रावधान है। इन संस्थाओं में बालक/ बालिकाओं के विकास एवं पुनर्वास की पूर्ण व्यवस्था के साथ-साथ भोजन, वस्त्र, शिक्षा, प्रशिक्षण की नि:शुल्क व्यवस्था की जाती है।
3. विशेष गृह - किशोर न्याय अधिनियम की धारा 9 में किशोर न्याय बोर्ड से सजा प्राप्त विधि के साथ संघर्षरत बच्चों को 18 वर्ष की आयु पूर्ण होने तक रखने के लिए विशेष गृहों का प्रावधान किया गया है।
4. अधिनियम की धारा 48 के अन्तर्गत विमन्दित बालक/ बालिका के समुचित संरक्षण, देखभाल व उपचार हेतु राजकीय विमन्दित महिला व बाल गृह, सेठी कॉलोनी, जयपुर को मान्यता प्राप्त संस्थान प्रमाणित किया हुआ है।
Monday, August 25, 2008
एचआईवी / एड्स
एचआईवी / एड्स
एचआईवी / एड्स के होने का सम्बन्ध उम्र , चमड़ा, रंग, जाति , वर्ग , धर्म, किसी भौगोलिक स्थान, नैतिक विचलन एवं अच्छी व बुरी आदतों से नहीं है। कोई भी व्यक्ति एचआईवी का शिकार हो सकता है। एचआईवी के कारण ही एड्स फैलता है। एचआईवी से पीड़ित व्यक्ति के शरीर से निकले द्रव्य, जैसे वीर्य, संसर्ग द्वार से निकले द्रव्य, खून या माँ के दूध के संपर्क में आने से फैल सकता है। इसके अलावा, एचआईवी पीड़ित व्यक्ति के खून के संपर्क में सुई के साथ नशे के लिए प्रयुक्त की सुई, गोदने व शरीर में भोकने में प्रयुक्त सुई से भी एचआईवी फैलता है।
करोडों बच्चे आज या तो एचआईवी / एड्स के शिकार हैं या उससे प्रभावित हैं। माता - पिता के असमय देहान्त के कारण अनेक बच्चे अनाथ हो जाते है। माता से बच्चे को एचआईवी / एड्स का फैलना साधारण बात है। लेकिन बच्चों के साथ होने वाले यौन दुर्व्यवहार के कारण भी बहुत सारे बच्चे इस रोग के शिकार हो जाते हैं। बच्चों एवं युवाओं में नशीले पदार्थों की वजह से भी इस रोग के होने का खतरा रहता है। इन परिस्थितियों में बच्चों को एचआईवी/एड्स के बारे में जानकारी नहीं देना ठीक नहीं है। इसके अतिरिक्त उन्हें अपने आपको इस रोग से किस तरह सुरक्षित रखना चाहिये, इस बारे में भी जानकारी प्राप्त करने के अधिकार से वंचित नहीं करना चाहिए।
एशिया में चीन के बाद भारत में एचआईवी/एड्स पीड़ित लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है। संयुक्त राष्ट्र एड्स संस्था के अनुसार भारत में 0 से 14 वर्ष उम्र के लगभग 0.16 करोड़ बच्चे एचआईवी के शिकार हैं।
एक समाचार रिपोर्ट के अनुसार केरल के पराप्पाननगडी के एक सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालय में 6 वर्षीय बबीता राज को स्कूल प्रबंधन ने इसलिए उसके स्कूल आने पर रोक लगा दी क्योंकि उसके पिता की मृत्यु एड्स के कारण हो गई थी। सामाजिक कार्यकर्ताओं की मध्यस्थता के बाद भी उस बच्चे की एचआईवी जाँच कराई गई जिसमें पाया गया कि उसे एचआईवी नहीं है, इसके बावजूद स्कूल प्रबंधन ने उसे स्कूल में दाखिला नहीं दिया। साथ ही, स्थानीय सरकारी विद्यालय में भी उस बच्ची को दाखिला नहीं दिया गया।
स्रोतः फ्यूचर फॉरसेकेन , ह्यूमेन राईट्स वाच, पृष्ठ संख्या 73, 2004
हमें यह समझने की आवश्यकता है कि एचआईवी पीड़ित बच्चे के छूने से या उसके पास बैठने से, उसे आलिंगन करने से, या उसके साथ खेलने से यह रोग नहीं फैलता है।
यह सही है कि बच्चों के जानने के अधिकार व सहभागिता मुख्य रूप से इस बात आधारित है कि उसकी रुचि किस काम में है। इस तरह बच्चों को यौन सम्बन्ध, प्रजनन स्वास्थ्य या एचआईवी/ एड्स के बारे में जानकारी देने उम्र सीमा को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। जबकि इस संबंध में सच यह है कि हम बच्चों के इस तरह के प्रश्नों का सामना करने के लिए स्वयं ही मानसिक रूप से तैयार नही हैं।
पहले लोगों को एचआईवी / एड्स के बारे में बतलाने के बजाय उन बच्चों को, जिनके परिवार में एचआईवी/ एड्स के रोगी होते थे, उन्हें स्कूलों से बाहर निकाल दिया जाता था। साथ ही, उन्हें एचआईवी/ एड्स रोग की वजह से मूलभूत सेवाएँ व मौलिक अधिकार के उपभोग से वंचित कर दिया जाता था। भारतीय संविधान के अनुसार सभी व्यक्ति को समानता एवं भेदभाव मुक्त रहने का अधिकार है और जो कोई भी असमानता एवं भेदभाव को बढ़ावा देता है वह दंड का भागी हो सकता है।
अगर हमें यह बात मालूम होती है कि किसी व्यक्ति को एचआईवी पॉजिटिव है तो हमें उस व्यक्ति को उचित इलाज की सुविधा उपलब्ध करानी चाहिए ताकि स्वस्थ हो सके और इस रोग का प्रसार अन्य लोगों तक न हो सके। अगर उन बच्चों को जिन्हें यह बीमारी होने की संभावना है, विद्यालय से निकाल दिया गया तो हम उनके स्वास्थ्य के बारे में खबर नहीं रख सकते और उनकी मदद भी नहीं कर सकते। इससे खतरा और बढ़ जाता है। भेदभाव के द्वारा दिनोदिन बढ़ते इस रोग को समाप्त नहीं किया जा सकता है।
एचआईवी / एड्स के होने का सम्बन्ध उम्र , चमड़ा, रंग, जाति , वर्ग , धर्म, किसी भौगोलिक स्थान, नैतिक विचलन एवं अच्छी व बुरी आदतों से नहीं है। कोई भी व्यक्ति एचआईवी का शिकार हो सकता है। एचआईवी के कारण ही एड्स फैलता है। एचआईवी से पीड़ित व्यक्ति के शरीर से निकले द्रव्य, जैसे वीर्य, संसर्ग द्वार से निकले द्रव्य, खून या माँ के दूध के संपर्क में आने से फैल सकता है। इसके अलावा, एचआईवी पीड़ित व्यक्ति के खून के संपर्क में सुई के साथ नशे के लिए प्रयुक्त की सुई, गोदने व शरीर में भोकने में प्रयुक्त सुई से भी एचआईवी फैलता है।
करोडों बच्चे आज या तो एचआईवी / एड्स के शिकार हैं या उससे प्रभावित हैं। माता - पिता के असमय देहान्त के कारण अनेक बच्चे अनाथ हो जाते है। माता से बच्चे को एचआईवी / एड्स का फैलना साधारण बात है। लेकिन बच्चों के साथ होने वाले यौन दुर्व्यवहार के कारण भी बहुत सारे बच्चे इस रोग के शिकार हो जाते हैं। बच्चों एवं युवाओं में नशीले पदार्थों की वजह से भी इस रोग के होने का खतरा रहता है। इन परिस्थितियों में बच्चों को एचआईवी/एड्स के बारे में जानकारी नहीं देना ठीक नहीं है। इसके अतिरिक्त उन्हें अपने आपको इस रोग से किस तरह सुरक्षित रखना चाहिये, इस बारे में भी जानकारी प्राप्त करने के अधिकार से वंचित नहीं करना चाहिए।
एशिया में चीन के बाद भारत में एचआईवी/एड्स पीड़ित लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है। संयुक्त राष्ट्र एड्स संस्था के अनुसार भारत में 0 से 14 वर्ष उम्र के लगभग 0.16 करोड़ बच्चे एचआईवी के शिकार हैं।
एक समाचार रिपोर्ट के अनुसार केरल के पराप्पाननगडी के एक सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालय में 6 वर्षीय बबीता राज को स्कूल प्रबंधन ने इसलिए उसके स्कूल आने पर रोक लगा दी क्योंकि उसके पिता की मृत्यु एड्स के कारण हो गई थी। सामाजिक कार्यकर्ताओं की मध्यस्थता के बाद भी उस बच्चे की एचआईवी जाँच कराई गई जिसमें पाया गया कि उसे एचआईवी नहीं है, इसके बावजूद स्कूल प्रबंधन ने उसे स्कूल में दाखिला नहीं दिया। साथ ही, स्थानीय सरकारी विद्यालय में भी उस बच्ची को दाखिला नहीं दिया गया।
स्रोतः फ्यूचर फॉरसेकेन , ह्यूमेन राईट्स वाच, पृष्ठ संख्या 73, 2004
हमें यह समझने की आवश्यकता है कि एचआईवी पीड़ित बच्चे के छूने से या उसके पास बैठने से, उसे आलिंगन करने से, या उसके साथ खेलने से यह रोग नहीं फैलता है।
यह सही है कि बच्चों के जानने के अधिकार व सहभागिता मुख्य रूप से इस बात आधारित है कि उसकी रुचि किस काम में है। इस तरह बच्चों को यौन सम्बन्ध, प्रजनन स्वास्थ्य या एचआईवी/ एड्स के बारे में जानकारी देने उम्र सीमा को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। जबकि इस संबंध में सच यह है कि हम बच्चों के इस तरह के प्रश्नों का सामना करने के लिए स्वयं ही मानसिक रूप से तैयार नही हैं।
पहले लोगों को एचआईवी / एड्स के बारे में बतलाने के बजाय उन बच्चों को, जिनके परिवार में एचआईवी/ एड्स के रोगी होते थे, उन्हें स्कूलों से बाहर निकाल दिया जाता था। साथ ही, उन्हें एचआईवी/ एड्स रोग की वजह से मूलभूत सेवाएँ व मौलिक अधिकार के उपभोग से वंचित कर दिया जाता था। भारतीय संविधान के अनुसार सभी व्यक्ति को समानता एवं भेदभाव मुक्त रहने का अधिकार है और जो कोई भी असमानता एवं भेदभाव को बढ़ावा देता है वह दंड का भागी हो सकता है।
अगर हमें यह बात मालूम होती है कि किसी व्यक्ति को एचआईवी पॉजिटिव है तो हमें उस व्यक्ति को उचित इलाज की सुविधा उपलब्ध करानी चाहिए ताकि स्वस्थ हो सके और इस रोग का प्रसार अन्य लोगों तक न हो सके। अगर उन बच्चों को जिन्हें यह बीमारी होने की संभावना है, विद्यालय से निकाल दिया गया तो हम उनके स्वास्थ्य के बारे में खबर नहीं रख सकते और उनकी मदद भी नहीं कर सकते। इससे खतरा और बढ़ जाता है। भेदभाव के द्वारा दिनोदिन बढ़ते इस रोग को समाप्त नहीं किया जा सकता है।
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