Monday, August 25, 2008

एचआईवी / एड्स

एचआईवी / एड्स

एचआईवी / एड्स के होने का सम्बन्ध उम्र , चमड़ा, रंग, जाति , वर्ग , धर्म, किसी भौगोलिक स्थान, नैतिक विचलन एवं अच्छी व बुरी आदतों से नहीं है। कोई भी व्यक्ति एचआईवी का शिकार हो सकता है। एचआईवी के कारण ही एड्स फैलता है। एचआईवी से पीड़ित व्यक्ति के शरीर से निकले द्रव्य, जैसे वीर्य, संसर्ग द्वार से निकले द्रव्य, खून या माँ के दूध के संपर्क में आने से फैल सकता है। इसके अलावा, एचआईवी पीड़ित व्यक्ति के खून के संपर्क में सुई के साथ नशे के लिए प्रयुक्त की सुई, गोदने व शरीर में भोकने में प्रयुक्त सुई से भी एचआईवी फैलता है।
करोडों बच्चे आज या तो एचआईवी / एड्स के शिकार हैं या उससे प्रभावित हैं। माता - पिता के असमय देहान्त के कारण अनेक बच्चे अनाथ हो जाते है। माता से बच्चे को एचआईवी / एड्स का फैलना साधारण बात है। लेकिन बच्चों के साथ होने वाले यौन दुर्व्यवहार के कारण भी बहुत सारे बच्चे इस रोग के शिकार हो जाते हैं। बच्चों एवं युवाओं में नशीले पदार्थों की वजह से भी इस रोग के होने का खतरा रहता है। इन परिस्थितियों में बच्चों को एचआईवी/एड्स के बारे में जानकारी नहीं देना ठीक नहीं है। इसके अतिरिक्त उन्हें अपने आपको इस रोग से किस तरह सुरक्षित रखना चाहिये, इस बारे में भी जानकारी प्राप्त करने के अधिकार से वंचित नहीं करना चाहिए।
एशिया में चीन के बाद भारत में एचआईवी/एड्स पीड़ित लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है। संयुक्त राष्ट्र एड्स संस्था के अनुसार भारत में 0 से 14 वर्ष उम्र के लगभग 0.16 करोड़ बच्चे एचआईवी के शिकार हैं।
एक समाचार रिपोर्ट के अनुसार केरल के पराप्पाननगडी के एक सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालय में 6 वर्षीय बबीता राज को स्कूल प्रबंधन ने इसलिए उसके स्कूल आने पर रोक लगा दी क्योंकि उसके पिता की मृत्यु एड्स के कारण हो गई थी। सामाजिक कार्यकर्ताओं की मध्यस्थता के बाद भी उस बच्चे की एचआईवी जाँच कराई गई जिसमें पाया गया कि उसे एचआईवी नहीं है, इसके बावजूद स्कूल प्रबंधन ने उसे स्कूल में दाखिला नहीं दिया। साथ ही, स्थानीय सरकारी विद्यालय में भी उस बच्ची को दाखिला नहीं दिया गया।
स्रोतः फ्यूचर फॉरसेकेन , ह्यूमेन राईट्स वाच, पृष्ठ संख्या 73, 2004
हमें यह समझने की आवश्यकता है कि एचआईवी पीड़ित बच्चे के छूने से या उसके पास बैठने से, उसे आलिंगन करने से, या उसके साथ खेलने से यह रोग नहीं फैलता है।
यह सही है कि बच्चों के जानने के अधिकार व सहभागिता मुख्य रूप से इस बात आधारित है कि उसकी रुचि किस काम में है। इस तरह बच्चों को यौन सम्बन्ध, प्रजनन स्वास्थ्य या एचआईवी/ एड्स के बारे में जानकारी देने उम्र सीमा को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। जबकि इस संबंध में सच यह है कि हम बच्चों के इस तरह के प्रश्नों का सामना करने के लिए स्वयं ही मानसिक रूप से तैयार नही हैं।
पहले लोगों को एचआईवी / एड्स के बारे में बतलाने के बजाय उन बच्चों को, जिनके परिवार में एचआईवी/ एड्स के रोगी होते थे, उन्हें स्कूलों से बाहर निकाल दिया जाता था। साथ ही, उन्हें एचआईवी/ एड्स रोग की वजह से मूलभूत सेवाएँ व मौलिक अधिकार के उपभोग से वंचित कर दिया जाता था। भारतीय संविधान के अनुसार सभी व्यक्ति को समानता एवं भेदभाव मुक्त रहने का अधिकार है और जो कोई भी असमानता एवं भेदभाव को बढ़ावा देता है वह दंड का भागी हो सकता है।
अगर हमें यह बात मालूम होती है कि किसी व्यक्ति को एचआईवी पॉजिटिव है तो हमें उस व्यक्ति को उचित इलाज की सुविधा उपलब्ध करानी चाहिए ताकि स्वस्थ हो सके और इस रोग का प्रसार अन्य लोगों तक न हो सके। अगर उन बच्चों को जिन्हें यह बीमारी होने की संभावना है, विद्यालय से निकाल दिया गया तो हम उनके स्वास्थ्य के बारे में खबर नहीं रख सकते और उनकी मदद भी नहीं कर सकते। इससे खतरा और बढ़ जाता है। भेदभाव के द्वारा दिनोदिन बढ़ते इस रोग को समाप्त नहीं किया जा सकता है।

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