Tuesday, January 26, 2010

फुटपाथ पर भटकी मासूम हसरतों की उड़ान

जिंदगी में भले ही कितनी भी दुश्वारियां हों, लेकिन सपने देखने में फुटपाथ पर रहने वाले बच्चे आम बच्चों से कहीं भी पीछे नहीं हैं। एक सर्वेक्षण रिपोर्ट से उजागर हुआ है कि 14 साल से अधिक उम्र के करीब 50 फीसदी फुटपाथी बच्चे जीवन में खूब धन कमाने की चाह रखते हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें मादक पदार्र्थो की तस्करी और चोरी जैसे अपराधों का सहारा लेने से भी परहेज नहीं है। महिला व बाल विकास मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान की ओर से किए गए इस सर्वेक्षण के अनुसार, ऊंची हसरतों को पूरा करने के लिए कई नौनिहाल जहां बाल मजदूरी का अभिशाप झेल रहे हैं, वहीं कुछ बच्चे चोरी का सामान बेचकर या तस्करी के धंधे से पैसा कमा रहे हैं।

ज्यादा पैसा, बड़ी कार :

सर्वेक्षण में 14 साल तक की उम्र के 43 फीसदी फुटपाथी बच्चों ने बताया कि खूब पैसा कमाना उनके जीवन का मकसद है। 12 से 16 फीसदी बच्चों ने बड़ी कार चलाने की इच्छा जताई। आठ साल की उम्र के 23 फीसदी से ज्यादा बच्चों का कहना था कि वे स्कूल जाना चाहते हैं और पढ़-लिखकर डॉक्टर बनना चाहते हैं।

तस्करी में लिप्त :

केन्द्र सरकार के समेकित कार्यक्रमों के तहत संचालित केंद्रों में पंजीकृत बच्चों के बारे में स्थानीय सलाहकारों से पूछे गए सवालों पर आधारित इस अध्ययन में कहा गया है कि लगभग 13 फीसदी फुटपाथी बच्चे मादक पदार्र्थो की तस्करी में लिप्त हैं। आठ फीसदी बच्चे नशीली दवाओं का अवैध व्यापार करते हैं। करीब 26 फीसदी बच्चे दिनभर में औसतन 25 रुपए से ज्यादा कमा लेते हैं। हालांकि, 16 फीसदी बच्चे ऐसे भी हैं, जिन्हें कम कमाई पर माता-पिता या संबंधियों की पिटाई का शिकार होना पड़ता है।

कहां बीत रहा है बचपन

ढाबे या ऑटो गैराज : 45 फीसदी

रद्दी बटोरना : 37.7 फीसदी

घरेलू नौकरी : 31 फीसदी

जूता पॉलिश : 26 फीसदी

हॉकर : 13.11

(नोट- कुछ बच्चे एक से ज्यादा काम करते हैं।)

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