Monday, April 12, 2010

क्या होगा लडकों का

क्लास के 100 बच्चों में दर कुंवारे

कालेज के 1000 छात्रों में 100 रहेंगे कुंवारे

प्रदेश में एक करोड युवक शादी योग्य

दस लाख को नही मिलेगी दुल्हन

क्या होगा लडकों का

सेक्स रेशो में भारी गिरावट

2020 से 2030 के बीच लडकियों की संख्या आधी तक गिर सकती है

उल्टा दहेज देंने की नौबत

प्रदेश में लाखों लडके कुंवरे बैठे

नही मिल रही वधू

100 में से 10 लडके कुवारें रहेंगे

प्रदेश में लाखों लडके नही बांध पाऐंगे सेहरा

लडकों को शादी की चिंता

लडकियों की कमी

सामाजिक तानाबाना बिखरेगा

क्या करेंगे लाखों कुंवारे

क्या लेंगे सन्यास या एक लडकी से होगी दो लडकों की शादी या फिर संमलैंगिकता बढेगी या करेंगे अपराध

समाज के सामने कई सवाल

सोनोग्राफी का नतीजा आना बाकी

लडकियों की पेट में हत्या का असर आना बाकी

2010 में लडकियों की तादात आधी रह जाएगी

2010 में आधे लडके कुंवारे रहेंगे

अभी भी हालात बिगडे

युवाओं को नही मिल रही शादी योग्य युवतियां




लडकों के लिए खतरे की घंटी बज गई है। मां बाप परेशान हैं लडका शादी के लायक हो गया है लेकिन ढूंढे से भी नही मिल रही बहू। पांच पांच लडके बैठे है बिना शादी के। ये भविष्य के नही वर्तमान के हालात हैंे जी हां लाखों लडकों को शादी के लिए दुल्हन का इंतजार है। हजारों लडके 40 के बाद भी कुंवारे हैं। प्रदेश में लडकियों की संख्या हजार पर नौसौ से भी कम हैं। येे हालात तब है जब 20 साल पहले भ्रण परीक्षण की सुविधा नही थी गर्भ में ही लडकियों की पहचान संभव नही थी। आधुनिक तकनीक के चलते लडकियांे की भ्रूण हत्या के नतीजे तो अभी आना बाकी है। पिछले दस सालों में इस तकनीक से जो हुआ है उसका अनुमान लगाया जाए तो 2020 में लडकियों की तादात 1000 पर 500 से 700 से ज्यादा नही रहेगी ये हो चुका है इसलिए तैयार रहिए 2020 में दुल्हन ढूंढे से नही मिलेगी ऐंसे में सामाजिक तानाबाना बिगडेगा अराजकता फैलेगी।
लडकियांे के दिन फिरने वाले हैं अब दहेज के लिए कोई उन्हे परेशान नही करेगा अब दुल्हनों को ससुराल से नही भगाया जाऐगा। मां बाप को लडकी की शादी की चिंता नही सताऐेगी। पति पत्नियों को घर से निकाल दूसरी शादी करने की धमकी नही देंगे अब वाकई नारियां पुजेगी दहेज लडके वाले नही लडकी वाले देंगे ! लडकियों को शायद ये हसीन सपना लगे लेकिन ये सपना नही है हकीकत बनते जा रहा है। जी हां वक्त बदल गया है दुल्हन बनने वाली लडकियों का टोटा पड गया है जनसंख्या की गणना अभी जारी है अगले साल देख लीजिए नतीजे क्या आते है लेकिन हम आपको अभी से अनुमानित आंकडा बता देते हैं लडकियों की संख्या 1000 लडकों पर 900 से कम हो चुकी है शायद वास्तविक हालात इससे भी ज्यादा चैकाने वाले है। जाहिर सी बात है प्रदेश के शादी योग्य एक 50 लाख लडकों में से 5 लाख को शादी के लिए दुल्हन नही मिल रही । एक रिसर्च बता रही है कुवारे लडकों की उम्र बढती जा रही है 40 , 40 साल के लडके कुंवारे बैठे है मा बाप मैरिज ब्यूरो के चक्कर काट रहे हैंे अखबारों में विज्ञापन दे रहे है लेकिन वधू नही मिल रही वैवाहिकी मै शादी योग्य लडकियों के लिए वर चाहिए के विज्ञापन कम होते जा रहे है और वधू चाहिए के विज्ञापन बढते जा रहे हैं। आपके जहन में ये सवाल जरूर आ रहा होगा कि 1991 और 2001 की जनगणना में भी लडकिया लडकों की तुलना में कम थी तब ऐंसे हालात क्यू पैदा नही हुए अब इसे जरा साइंटीफिक तरीके से समझने की कोशिश कीजिए। दरअसल 1991 की जनगणना के मुताबिक 1000 पर 945 लडकियां थी लेकिन उस वक्त शादी योग्य युवक युवतियों का अनुपात बराबर था उस वक्त अंतर बच्चे बच्चियों के अनुपात में था । 2001 में 1000 पर 927 लडकियां रह गई तब भी शादी योग्य युवतियों का अनुपात लगभग बराबर था लेकिन इसका असर अब दिख है क्योंकि ये बच्चे बडे हो गए और शादी योग्य युवक युवतियों का अनुपात 1991 और 2001 की तुलना में बराबर नही बल्कि 1000 पर 900 के लगभग पहुच गया है । अब अपने आस पास देखिए कितने लडके कुंवारे हैं और कितनी लडकिया अंतर साफ समझ आऐगा। अब सवाल ये उठता है कि 2010 में लडकियों की तादाद इतनी क्यों गिरी क्योंकि 1970 से 1980 के दशक में तो पेट में लडके लडकियों पहचान कर लडकियों को गर्भ में मार देने की तकनीक ही नही थी ये बिल्कुल सही है लेकिन तब तक नसबंदी शुरू हो चुकी थी लोगों ने इसका फायदा उठाया एक या दो लडके हुए तो नसबंदी करा ली और लडकियों को पैदा ही नही होने दिया इसी से 1000 पर 900 लडकियां रह गई। सोनोग्राफी से लडकियों की पहचान कर लडकियांे की भ्रण हत्या का असर तो अगली पीढी देखेगी अनुमान है कि आच के बच्चे जब युवा हांेंगे तो लडकिया की तादात 1000 लडकों पर 500 से 700 के बीच ही रह जाऐगी । ये हालात माथे पर सिलवटें डालने वाले है और आने वाले समय मै सामाजिक ढांचे को ही खतरें में डाल सकते हैं। हमारे भारतीय समाज में लड़कियों से भेदभाव रखने की मानो एक परंपरा रही है, कम से कम मध्यकाल से तो ऐसा है ही। तब लड़कियों को जन्म के समय ही मार दिया जाता था और ज्यादातर पुरूष युद्ध में मारे जाते थे। इस तरह बहुत हद तक जनसंख्या लिंगानुपात सामान्य बना रहता था। नवजात लड़कियों से छुटकारा पाने के लिए जहर देना या भूसे के ढेर पर दम घुटने के लिए छोड़ देना कुछ पारंपरिक तरीके थे। इन तरीकों का की जगह सोनोग्राफी आदि जैसी उच्च चिकित्सा तकनीकों ने ले लिया है, जिनसे पता चलता है कि कोख में पलने वाले बच्चे का लिंग क्या है। नतीजतन किसी नवजात की हत्या नहीं करनी पड़ती, भूण हत्या से ही काम चला लिया जाता है। इससे जनसंख्या लिंगानुपात में बड़ा अंतर आ गया है, जिसके नतीजे निश्चित तौर पर सुखद नहीं हैं।
सन 2001 की जनगणना में जनसंख्या का लिंगानुपात 933 महिलाएं प्रति 1000 पुरूष था। 1991 से 2001 में बच्चों के लिंगानुपात में गिरावट आई है। जो अनुपात 1991 में 945 लड़कियां प्रति 1000 लड़का था जो घटकर 2001 में 927 लड़कियां प्रति 1000 लड़कों तक रह गया। कुछ राज्यों में जनसंख्या के लिंगानुपात और राष्ट्रीय जनसंख्या लिंगानुपात में आश्चर्यजनक रूप से अंतर है। जैसे, पंजाब-798, हरियाणा 819 दिल्ली 688 गुजरात 883 हिमाचल 896 उत्तरांचल 908 राजस्थान 909 महाराष्ट्र 913 और मध्य प्रदेश में 919 महिलाएं प्रति 1000 पुरूष। लिंगानुपात में आ रही यह गिरावट कितनी चिंताजनक है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जहां 1991 में 800 से कम के लिंगानुपात वाला एक भी जिला नहीं था, वहीं 2001 में ऐसे जिलों की संख्या 14 है। इसी तरह पहले ऐसा एकमात्र जिला था जहां लिंगानुपात 800 से 850 के बीच में था लेकिन ऐसे जिले 31 हो गए हैं। देश के 116 जिलों में यह अनुपात 900 से कम है। इस तरह के चलन को सोनोग्राफी जैसी सुविधाओं ने एक अतिरिक्त गति दे दी है। सोनोग्राफी जैसी सुविधाएं लोगों को आसानी से मिल भी जाती हैं। यहां तक कि यह मध्यप्रदेश के सुदूर जिले मुरैना में भी उपलब्ध है। मई, 2005 में इस जिले के सभी गांवो में घर-घर किए गए एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि यहां का लिंगानुपात चिंताजनक स्थिति तक पहुंच गया है। मध्यप्रदेश के बारह जिलों में बाल लिंगानुपात 900 के नीचे जा पहुंचा है, लेकिन इंदौर जिला दुनिया की आधी आबादी के लिए उम्मीद जगा रहा है, जहां पिछले चार साल में बाल लिंगानुपात 836 से बढ़कर 912 हो गया है। बेटियों की कोख में ही हत्या के मामले में मध्यप्रदेश पंजाब और हरियाणा के समकक्ष पहुंचता जा रहा है। इन राज्यों में लड़कियों की लगातार घटती संख्या चिंता का विषय बनी हुई है। श्मध्यप्रदेश के बारह जिलों में प्रति हजार बालकों पर 900 से कम बालिकाएं हैं। कन्या भ्रूण हत्या एक सामाजिक समस्या है, जिसके दुष्परिणाम लगातार सामने आ रहे हैं। फिलहाल 2011 के लिए जनगणना का काम शुरू हो चुका है जिसके नतीजे चैकाने वाले ही होगे।

अतुल पाठक

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