Monday, November 15, 2010

बाल दिवस पर चाचा नेहरू की आत्मा का दर्द


बाल दिवस पर चाचा नेहरू की आत्मा का दर्द
बाल दिवस पर चाचा नेहरू की आत्मा का दर्द .. बाल दिवस बाल दिवस बच्चों का त्यौहार है। इस दिन देष भर में बच्चों के अच्छे स्वास्थय, उज्जवल भविष्य, उच्च षिक्षा, विकास की कामना की जाती है। बच्चों के लिए यह दिन आनंद और मौज मस्ती का दिन है। बाल दिवस पंडित जवाहर लाल नेहरू के जन्मदिन पर मनाया जाता है। नेहरू जी का जन्म 14 नवम्बर 1889 को हुआ था। उन्हे बच्चों से बहुत प्रेम था। यह दिन उनको श्रद्वांजिली के रूप में अर्पित है। नेहरू जी ने अपने जीवन के कीमती पल बच्चों के साथ बिताएं है। नेहरू जी का मानना था कि बच्चे ही देष का भविष्य है। खुष और स्वस्थय बच्चे ही भविष्य में एक मजबूत राश्ट्र का निर्माण कर सकते हैं। बच्चे भी उनसे बेहद प्रेम करते थे। बच्चे उन्हे प्यार से चाचा नेहरू कहकर पुकारते थे। एक बार नेहरू तमिलनाडु के दौरे पर थे और बच्चे नेहरू जी को देखने के लिए बेताव थे । वे उन्हें देखने के लिए पेड़ो पर चढ़े हुए थे। चाचा नेहरू ने यह देख पास में खड़े गुब्बारे वाले से गुब्बारे खरीद कर सभी बच्चों में बांट दिए। यह उनके जीवन का वो क्षण था जो बच्चों और नेहरू के आपसी प्रेम को दर्षाता है। बच्चो के लिए उनकी आॅखों में असीम प्रेम झलकता था। वो बच्चों के साथ हमेषा खेलने के लिए आतुर रहते थे। वे अक्सर बच्चो के बारे में कहा करते थे कि अगर तुमको भारत का भविष्य जानना है तो बच्चों की आंखों में देखो..... अगर उनकी आंखों में निराषा, भय, दर्द है तो देष भी उसी दिषा मे जायेगा अर्थात देष का भविष्य भयावह व कमजोर होगा। अगर देष का भविष्य उज्जवल बनाना है तो इन बच्चों को सभी सुविधाएं, प्यार, और अच्छा वातावरण दो.........
...... एक दिन चाचा नेहरू अपने निवास स्थान के बगीचे में टहल रहे थे तभी उन्हें छोटे बच्चे के रोने की आवाज़ सुनाई दी। नेहरू जी ने इधर उधर देखा तो एक पेड़ के नीचे चार पांच माह का बच्चा जोर जोर से रो रहा था। वो अकेला था उसके आस पास कोई नही था। नेहरू जी ने मन में सोचा कि सायद इसकी मां बगीचे में माली के साथ काम कर रही होगी तभी उसे यहां रखकर चली गई है। बच्चे को रोता देख नेहरू जी से रहा नही गया और उस बच्चे को अपनी बांहों में उठाकर झुलाने लगे जिससे बच्चा चुप हो गया और मुस्कुराने लगा। जब बच्चे की मां वापस आई तो उसे विष्वास नही हुआ कि उसका बच्चा चाचा नेहरू की गोद में खेल रहा है। चाचा नेहरू किसी बच्चे को रोता हुआ नही देख सकते थे।
चाचा नेहरू के कोट पर लगा गुलाब का फूल भी यही कहता है कि चाचा नेहरू आप बच्चों को बहुत प्यार करते हो....... दरअसल एक दिन एक बच्चे ने उनके कोट पर यह गुलाब का फूल लगाया था और तभी से गुलाब को उन्होनें अपने दिल से लगा कर रखा। ये उनका जुनून ही था बच्चों के प्रति प्रेम भाव का..............आज वो गुलाब का फूल उनके व्यक्तित्व की पहचान बन गया है बिना गुलाब के फूल के नेहरू जी का चित्र अधूरा ही लगेगा।
बाल दिवस मनाने का उदेष्य है कि देष के सभी बच्चों को सुख सुविधाएं, विकास योजनाए, षिक्षा व प्यार दिया जाये। परन्तु आज देष के वातावरण को देखकर कहीं न कही नेहरू जी की आत्मा रो रही होगी.............. क्योंकि आज उनके देष का भविष्य सड़कों के प्रत्येक कोनो में भीख मांग रहा है, कूड़ा कचरा बिन रहा है, कुपोषण का षिकार हो रहा है, दर दर भटक रहा है। नेहरू जी के मुताबिक बच्चों की आंखों में देखने से देष का भविष्य नजर आता है अगर इन बच्चों की आंखों में देखा जाये तो हमें इस देष का भविष्य अंधकारमय ही नजर आता है।
हमारे देष में दो वर्ग के बच्चे हैं एक वो जो खुषहाल जिन्दगी व्यतीत करते हैं और दूसरे वो जो सड़को पर ठोकरे खाते फिरते हैं। मैने इन दोनो जिन्दगी के बचपन को जानना चाहा... मैने देखा दोनो वर्ग के बचपन में हाथ भरे है। दोनो को जिन्दगी ने बहुत कुछ दिया। जहां एक जिंदगी के हाथ में सुख था वहीं दूसरी जिन्दगी के हाथ में दुख............
मैने बात की डा विकास से जो एक खुषहाल जिन्दगी व्यतीत कर रहें हैं। मैने उनसे उनके बचपन के बारे में पूछा। ‘बचपन’ सुनते ही उनके चहरे पर एक खुषी की लहर छा गई। आंखो में एक चमक आ गई। उन्होने बताया कि मेरा बचपन प्यार, खुषी और मौज मस्ती से भरा हुआ था। परिवार बालों का प्यार, स्कूल, काॅपी किताब सब था। बहुत से खिलौने, खाना पीना, नये कपड़े बहुत मजा आता था। बचपन के प्यार और सुख सुविधाओं से ही मैं आज इस मुकाम पर हूॅ। काष मैं दोवारा बचपन में जा पाता। तो यह थी खुषहाल बचपन की कहानी.......
वहीं जब मैने दूसरे वर्ग यानी सड़क पर भीख मांगने वाले रामू से उसके बचपन के बारे में पूछा तो यह सुन उसकी आंखें भर आई। उसने बताया पैदा होते ही वह अपनी माॅ के काम आया मुझे हाथ में लेकर लोगों की दया से उसे भीख मिलती थी। जब थोड़ा बड़ा हुआ तो मेरे हाथ में था भीख का कटोरा...., लोगों की गालियां...., फटे पुराने कपड़े....., सोने के लिए फुटपाथ....., पुलिस की लात....., लोगों से पैसे निकलवाने के लिए सरीर से खिलवाढ़, खाने में झूट्न यही मिला बचपन मे मुझे... और रही बात आज की तो आप देख सकती हैं कि आज भी मैं यहीं हूॅ उन्ही हालातों में और हमारा भविष्य है ये हमारे साथ भीख मांगते बूढ़े काका... सरकार ने तो हमारे विकास के लिए बहुत कुछ किया है जहां पहले छोटे छोटे बाजारों में भीख में एक व्यक्ति से 1 या 2 रूपये मिलते थे बही आज जगह जगह इतने बड़े माॅल, होटल, बन गये है जहा हमें 5 या 10 रूपये मिल जाते है। यही हैं हमारे प्रति हमारी सरकार के विकास कार्य........
यह देख और सुनकर जब मेरी आंखो में आंसु आ गये तो नेहरू जी की आत्मा पता नही किस कोने में सिसकियां भर रही होगी। यह एक विडम्बना ही है कि देष का एक बड़ा वर्ग सड़को पर भटक रहा है जिसके कारण ये बच्चे षिकार होते है कुपोष्ण के, बुरी संगत के, नषे के, खराब स्वास्थ के....
घर घर जाकर सभी बच्चों को पोलियो, टेटनस, खसरा, आदि के टीके लगाये जाते है। क्या कभी सड़को पर भटक रहे इन बच्चो को भी ये टीके लगते हैं ? इन बच्चो के पास ना कोई घर है ना ठिकाना ये बच्चे अगर आज षहर के एक कोने में नजर आयेंगे तो कल दूसरे कोने में दिखाई पड़ते हैं। इन बच्चों का मुख्य संकट गरीबी है। क्यों इनके परिवार बालों को कोई काम मुहैया नही कराया जाता हैं ? जिससे ये बच्चे घरों में रह सके, अच्छा खाना खा सके, स्कूल जा सकें और स्वस्थ जीवन वयतीत कर सकें।
मेरा सरकार से एक ही सवाल है ‘बाल दिवस’ या अन्य षुभ अवसरों पर बच्चों के सुरक्षित भविष्य के लिए अनेको योजनाओं की धोश्णाए होती है। फिर क्यों बाद में इन्हें ठण्डे बस्ते में डाल दिया जाता है ? ये योजनाएं क्यों कार्यरत नही होती।
देष की गरीबी सिर्फ किसी गरीब की कुटिया में खाना खाने से दूर नही होती। देष की गरीबी दूर होती है तो गरीब के दुखों को सुखों में परिवर्तित करने से...... जो खाना आपको खिलाया गया वो कितने दुखों के भोग से उस गरीब को मिला इस बात को समझने से...........
अगर भगवान कृष्ण की भाॅति गरीब सुदामा के चावल खाना जानते हो तो उसके बदले वो सुख भी देना सीखो जो भगवान कृष्ण ने सुदामा को दिये थे........
‘बाल दिवस’ की सार्थकता तभी पूरी होगी जब सड़कों पर बच्चे नजर तो आयेंगे लेकिन भीख मांगते हुए नही बल्कि बस्ता टांगे स्कूल को जाते हुए। उस दिन मिलेगी चाचा नेहरू की आत्मा को खुशी।

No comments:

Post a Comment