Monday, February 1, 2010

बच्चों की भडास

बच्चों की भडास चिल्ड्रन्स डे पर भोपाल में आयोजित एक कार्यक्रम में प्रदेश भर के करीब 14 जिलांे के दलित बच्चे एक मंच पर इकट्ठा हुए। अपनों के बीच बच्चों की हिम्मत बढ़ी ओर इसके बाद उन्होंने अपने साथ हो रहे अन्याय को बताना शुरू कर दिया। होशंगाबाद जिले के ईश्पुर में रहने वाले यशवंत कुमार ने बताया कि दलित होने के कारण उसे मध्यान भोजन की रोटी फैंक कर दी जाती है। गांव में भी उससे लोग छुआ छूत करते हैं। मुरैना की रहने वाली नीता छारी का दर्द ये था कि उसे काफी प्रयासों के बाद भी स्कालरशिप नहीं मिल सकी। होशंगाबाद का नीलेश अपने समाज के उत्थान के लिए बच्चों को स्कूल जाने के लिए प्रेरित कर रहा है। इन बच्चों की पीड़ा ने ये जाहिर कर दिया कि तमाम सरकारी प्रयासों के बाद आज भी दलित वर्ग के छात्र छूआछत ओर दूसरी समस्याओं से ग्रसित हैं। आजादी के साठ साल बाद भी ये अपने संवैधानिक हक से महरूम हैं। आजादी के समय सन 1951 में दलित साक्षरता की दर 1 ़ 90 प्रतिशत थी जबकि गैर दलितों में 18 ़ 33 प्रतिशत साक्षरता दर थी। उस समय साक्षरता प्रतिशत का अंतर 16 प्रतिशत था। आज वर्ष 2001 की स्थिति में 54 ़69 प्रतिशत दलित साक्षर हैं ओर गैर दलितों का ये प्रतिशत 64 ़84 है। यानि आज भी दलित ओर गैर दलितों के बीच 10 ़45 प्रतिशत का अंतर है। कहने का मतलब ये कि इतने सालों में केवल 8 प्रतिशत की ही खाई पाटी जा सकी। मध्य प्रदेश के दलित बच्चों में यदि शिक्षा की स्थिति देखी जाए तो 45 प्रतिशत बच्चे कक्षा पांचवी तक पहुंचते पहुंचते स्कूल छोड़ देते हैं। शेष में से भी 45 प्रतिशत बच्चे कक्षा 6 वीं से 8 वीं तक आते आते स्कूल छोड़ देते हैं। शेष बचे 10 प्रतिशत बच्चों में से भी केवल 1 या 2 प्रतिशत बच्चे ही उच्च शिखा तक पहुंच पाते हैं। इस प्रकार दलित ग्रामीण क्षेत्र में आज भी बच्चे शाला में दर्ज तो होते हैं परंतु शिक्षा पूरी नहीं कर पाते।

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