• एक अरब आबादी वाला भारत सबसे बड़ा लोकतंत्र है जिसमें बच्चों की आबादी 40 करोड़ के करीब है,
• भारत में एड्स से संक्रमित 55,764 मामलों में 2,112 बच्चे हैं,
• एचआईवी/एड्स संक्रमण के 4 करोड़ 20 लाख मामलों में 14 फीसदी मामले ऐसे बच्चों के अनुमानित हैं जो 14 साल से कम उम्र के हैं,
• आईएलओ द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह पाया गया कि संक्रमित माता-पिता के बच्चों के साथ काफी भेदभाव किया जाता है जिनमें 35% को मूलभूत सुविधा से वंचित होना पड़ता है और 17% को अपनी आमदनी के लिए घटिया स्तर के काम करने पड़ते हैं,
• भारत में बाल श्रम की जटिल समस्या है जो गरीबी से गहरे तौर पर जुड़ी है,
• वर्ष 1991 की जनगणना के मुताबिक भारत में 11.28 मिलियन बाल श्रमिक हैं,
• बाल श्रम का 85% संख्य़ा ग्रामीण इलाकों में पाया जाता है। यह संख्या पिछ्ले दशक में बढ़ी है,
• स्ट्रीट चिल्ड्रेन ऐसे बच्चे होते हैं जिनका अपने परिवारों से ज्यादा वास्तविक घर सड़क होता है। यह ऐसी स्थिति है जिसमें उन्हें कोई सुरक्षा, निगरानी या जिम्मेदार वयस्कों से कोई दिशा-निर्देश नहीं मिलती। मानवाधिकार संगठन के अनुमान के मुताबिक भारत में करीब 1 करोड़ 80 बच्चे सड़कों पर रहते या काम करते हैं। इनमें से ज्यादातर बच्चे अपराधों, यौनवृत्तियों, सामूहिक हिंसा तथा नशीले पदार्थों के शिकार हैं।
स्ट्रीट चिल्ड्रेन एक ऐसा शब्द है जो शहर की सड़कों पर रहने वाले बच्चों के लिए प्रयोग होता है। वे परिवार की देखभाल और संरक्षण से वंचित होते हैं। सड़कों पर रहने वाले ज्यादातर बच्चे 5 से 17 वर्ष के हैं और अलग-अलग शहरों में उनकी जनसंख्या भिन्न है। स्ट्रीट चिल्ड्रेन निर्जन भवनों, गत्तों के बक्सों, पार्कों अथवा सड़कों पर रहते हैं। स्ट्रीट चिल्ड्रेन को परिभाषित करने के लिए काफी कुछ लिखा जा चुका है पर बड़ी कठिनाई यह है कि उनका कोई ठीक-ठीक वर्ग नहीं है, बल्कि उनमें से कुछ जहां थोड़े समय सड़कों पर बिताते हैं और बुरे चरित्र वाले वयस्कों के साथ सोते हैं। वहीं कुछ ऐसे हैं जो सारा समय सड़कों पर ही बिताते हैं और उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं होता।
यूनिसेफ द्वारा दी गई परिभाषा व्यापक रूप से मान्य है, जिसके तहत स्ट्रीट चिल्ड्रेन को दो मुख्य वर्गों में बांटा गया है-
• सड़कों पर रहने वाले बच्चे भीख मांगने से लेकर बिक्री करने जैसे कुछ आर्थिक क्रियाकलापों में लिप्त रहते हैं। उनमें से ज्यादातर शाम को घर जाकर अपनी आमदनी को अपने परिवारों में दे देते हैं। वे स्कूल जा सकते हैं तथा उनमें परिवार से जुड़े रहने की भी भावना हो सकती है। परिवार की आर्थिक बदहाली के कारण ये बच्चे आखिरकार स्थाई तौर पर सड़कों पर की ही जिंदगी चुन लेते हैं।
• सड़कों पर रहने वाले बच्चे वास्तव में सड़कों पर (या आम पारिवारिक माहौल से बाहर) ही रहते हैं। उनके बीच पारिवारिक बंधन मौजूद हो सकता है, पर यह काफी हल्का होता है जो आकस्मिकतौर पर या कभी-कभी ही कायम होता है।
Friday, January 2, 2009
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